Saturday, July 16, 2011

समलैंगिकता और बलात्कार की घटनाएं क्यों अंजाम देते हैं जवान ? Rape

बीएसएफ़ के जवान हों या कि सेना के, उन्हें सीमा पर देश की जनता की हिफ़ाज़त के लिए नियुक्त किया जाता है लेकिन ऐसे क़िस्से भी सामने आते रहते हैं जबकि इनमें से कोई अपने देश की आबरू ख़ुद ही लूट लेता है। ऐसे में इन्हें सज़ा देना ज़रूरी हो जाता है। हाईकोर्ट ने भी यही किया है, देखिए एक ख़ब : 


दुष्कर्मी जवानों की सजा बरकरार
लगभग 18 साल पहले बंगाल बार्डर पर स्थित एक गांव की गूंगी व बहरी लड़की से दुष्कर्म करने के मामले में नौकरी से हाथ धोने व सात साल की सजा पाने वाले सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के दो सिपाहियों को दिल्ली उच्च न्यायालय ने राहत देने से इंकार कर दिया है। न्यायमूर्ति प्रदीप नंदराजोग व न्यायमूर्ति सुनील गौड़ की खंडपीठ ने आरोपी भूषण सिंह व अवतार सिंह की याचिका को खारिज करते हुए कहा है कि तमाम तथ्यों से जाहिर है कि उन्होंने यह अपराध किया था।
अदालत ने उस दलील को भी खारिज कर दिया कि पीडि़ता ने उनको शिनाख्त परेड में ठीक से नहीं पहचाना था। अदालत ने कहा कि हो सकता है कि पीड़िता के गूंगी व बहरी होने के कारण वह अपनी बात को सही तरीके से न रख पाई हो। इतना ही नहीं, कोर्ट ने उस दलील को भी खारिज कर दिया कि घटना के दो दिन बाद क्यों शिकायत की गई। अदालत ने कहा कि दुष्कर्म के मामले में पीड़िता के परिवार को सामाजिक दबाव को देखना पड़ता है। इतना ही नहीं इस मामले में तो बीएसएफ के जवान शामिल थे। ऐसे में उनको जरूर इस बारे में सोचने में समय लगा होगा, लेकिन फिर भी उन्होंने घटना के अगले दिन ही गांव के प्रधान को बता दिया था और उसके एक दिन बाद शिकायत दर्ज हो गई थी।
अवतार सिंह व भूषण सिंह बीएसएफ की 55वीं बटालियन में बतौर कांस्टेबल बंगाल बार्डर पर तैनात थे। इन पर आरोप है कि इन्होंने एक गांव की गूंगी व बहरी लड़की से बीस अक्टूबर 1992 को दुष्कर्म किया। इस मामले में जनवरी 1993 में यह कहते हुए इनके खिलाफ जांच बंद कर दी गई थी कि इन्हें स्थानीय तस्करों के कहने पर फंसाया गया है। मगर बाद में फिर से जांच शुरू कर गई और जनरल सिक्योरटी फोर्स कोर्ट ने दस अक्टूबर 1996 को इन दोनों को नौकरी से बर्खास्त करते हुए सात-सात साल के कारावास की सजा दी थी। इसी आदेश को इन्होंने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
Source : http://in.jagran.yahoo.com/news/local/delhi/4_3_8025360.html

यह तो हुई दुष्कर्म की सज़ा लेकिन ध्यान इस पर भी दिया जाना चाहिए कि दुष्कर्म की नौबत क्यों आई ?
अक्सर ऐसा होता है कि नियम तो बना दिए जाते हैं लेकिन नियम बनाने वाले इनसान की ज़रूरतों से वाक़िफ़ ही नहीं होते। सुरक्षा बलों में तैनात जवानों की ड्यूटी ही ऐसी है कि उन्हें अपने घरों से बहुत दूर पोस्ट होना पड़ता है और इस पर भी को उन्हें चार-चार माह बाद छुट्टी मिल पाती है। विदेशियों से लड़ना आसान है लेकिन अपने शरीर में बनने वालों हॉर्मोन्स को हराना बहुत मुश्किल है। इसी के नतीजे में तरह तरह की शर्मनाक घटनाएं सामने आती रहती हैं। सैनिकों और अद्र्ध सैनिक बलों के जवानों का ध्यान पहले से बेहतर रखा जा रहा है लेकिन इस तरह की घटनाएं बताती हैं कि अभी भी कुछ और सुधार किए जाने की ज़रूरत है, ख़ास तौर से उनकी यौन ज़रूरतों को ध्यान में रखकर कुछ सुधार तुरंत किए जाने चाहिएं।

10 comments:

आपका अख्तर खान अकेला said...

bhtrin chintan bhtrin sujhaav srkar ko dhyaan dena chaahiye ....akhtr khan akela kota rajsthan

चंदन कुमार मिश्र said...

जमाल साहब!

कुछ तो सोचा जा सकता है लेकिन थोड़ा कम सहमत। आपकी अक्सी हाजिरात और वजूदी हाजिरात पर आलेख का इन्तजार है। लिखेंगे तो सूचित करेंगे।

रविकर said...

भूख न देखे जूठा भात ||

शानदार प्रस्तुति ||

बधाई भाईजान ||

समस्या का निराकरण जरुरी है, नहीं तो मातहत, छुट्टी के लिए उठाते रहेंगे बंदूकें, अपने बदतमीज अफसरों पर ||

virendra sharma said...

आपकी प्रस्तावना से पूरी तरह सहमत .सीमा पर हर पल मौत के साए में ज़िन्दगी .छुटियाँ किसे नहीं चाहिए .दवाब मन पर कहीं से तो निकलेगा बलात्कार या बन्दूक की गोली बनके छुट्टी की मंजूरी न देने वाले अफसर के प्रति .इसका मतलब यह नहीं है ,बलात्कार होना चाहिए .उसके कारणों पर प्रकाश डाल हम समाधान की और बढ़ें .औरत वहशीपन के सामने गूंगी ही बनके रह जाती है .पश्चिम की औरत तो है नहीं जो कहे -व्हेन रेप बिकम्स इन -एवितेबिल एन्जॉय इट .

अभिषेक मिश्र said...

वाकई समस्या के मनोवैज्ञानिक और व्यावहारिक समाधान की जरुरत है.

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

यही तो इस देश की त्रासदी है कि नियम और कानून तो ढेरों हैं पर इन्हें अंजाम देने की जुर्रत नहीं है- राजनीति या वैक्तिक कारणों से॥

vidhya said...

बधाई भाईजान ||

समस्या का निराकरण जरुरी है, नहीं तो मातहत, छुट्टी के लिए उठाते रहेंगे बंदूकें, अपने बदतमीज अफसरों पर ||

Unknown said...

bahut sahi baat kahi hai... dusro se ladna asan hai lekin apne sharir se ladna bahut mushkil hai.

Bharat Bhushan said...

जिन जवानों में आत्मसंयम नहीं उन्हें ढूँढ कर सेना से निकाल देना चाहिए.

Raj said...

Dr Anwar Saheb ek achha topic aapne uthaya hai magar maafi chahunga aapke analysis se ittefaq nahin rakh paa raha. Padh kar laga ki aap is haivaani harkat ko ek jawan ki naukari ke haalat se justify kar rahe hain. Mulk ki 20 lakh ki fauz mein vo do hi nahin hain jo samay par ghar nahin jaa paaye aur bhi bahut hain magar unke sanskaaron ne unhe aaisa karne se roka. Aur saath hi aaisa bhi nahin ki balatkaar ki ghatna chhutti se mahroom sipahi hi anjam laate hain. Sipahiyon ke kisson se kahin jyada ghar mein apni family ke saath rahne waale log shaamil hote hain aaisi harkaton mein.

Khair gour dene waali baat ye hai ki in donon ko saza High Court ne nahin di. High Court ne sirf inki appeal khaariz ki hai. Inhe saza inke mahakme ne hi Court Martial ke zariye di hai. Ye ek commendable baat hai.