Friday, July 22, 2011

अनम की क़ब्र के पास

आज के दिन अनम इस दुनिया से रूख़सत हुई थी। एक साल हो गया इस वाक़ये को। आज उसकी क़ब्र पर जाना हुआ। बड़े से क़ब्रिस्तान में सैकड़ों क़ब्रों के बीच एक छोटी सी क़ब्र बिल्कुल कच्ची। बारिश की वजह से उसकी मिट्टी बह कर लगभग ज़मीन के बराबर ही हो गई थी। मैंने फावले से ख़ुद थोड़ी सी मिट्टी डाली ताकि अगली बार आऊं तो पहचान सकूं कि मेरे वुजूद का एक हिस्सा किस जगह दफ़्न है !


वक़्त शाम का था। माहौल शांत था। शहर का यह क़ब्रिस्तान पहले शहर से बाहर था लेकिन अब यह शहर के अंदर ही आ गया है। यही वो जगह है जहां सारे शहर को समाना है एक-एक करके। लोगों ने दो तिहाई से ज़्यादा ज़मीन क़ब्ज़ा कर अपने मकान खड़े कर लिए हैं। अब क़ब्रिस्तान के चारों तरफ़ मकान बने हुए हैं। ज़िंदा और मुर्दा दोनों एक दूसरे के पड़ोस में रह रहे हैं बल्कि कितनी क़ब्रें तो आज मकानों के नीचे आ चुकी हैं। ज़ेरे-ज़मीन मुर्दे आबाद हैं और ज़मीन की सतह पर ज़िंदा। मुर्दों को ज़िंदा होना है और ज़िंदा लोगों को मुर्दा ताकि हरेक अपने अमल का अंजाम देखे।
ज़मीं खा गई आसमां कैसे कैसे ?

जब किसी क़ब्रिस्तान में जाओ तो यही अहसास होता है।

Monday, July 18, 2011

इंसान का परिचय Introduction

मैं एक इंसान हूं और निवास भारत में है। लोगों को बेवजह नफ़रत करते हुए और अपना जीवन व्यर्थ करते हुए देखता हूं तो दुख होता है। लोगों को उसूली ज़िंदगी जीने की प्रेरणा देना मेरा काम है। रोज़ी-रोटी के लिए भी भागदौड़ करनी पड़ती है क्योंकि घर में बीवी बच्चे और मां-बाप भी हैं। हमारे मत और हमारी परंपराएं कुछ भी हो सकती हैं लेकिन हम सब इंसान हैं और जो बात भी इंसानियत के खि़लाफ़ जाती है, वह हमारा मत बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए। दुनिया बदल रही है, हमें भी बदलना चाहिए लेकिन यह बदलाव बेहतर इंसान बनने के लिए होना चाहिए। जो बात भी बुराई की तरफ़ ले जाए उसे बदलना नहीं भटकना कहा जाएगा। हमें भटकने और भटकाने से बचना चाहिए। यही मेरी सोच है और यही मेरा मिशन है।

आज ‘नवभारत टाइम्स‘ में अपना ब्लॉग बनाया तो मैंने अपने परिचय में उपरोक्त बातें लिखी हैं
लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि आप कौन हैं ?
और क्या कर रहे हैं ?
जबकि आपको करना क्या चाहिए ?

Saturday, July 16, 2011

समलैंगिकता और बलात्कार की घटनाएं क्यों अंजाम देते हैं जवान ? Rape

बीएसएफ़ के जवान हों या कि सेना के, उन्हें सीमा पर देश की जनता की हिफ़ाज़त के लिए नियुक्त किया जाता है लेकिन ऐसे क़िस्से भी सामने आते रहते हैं जबकि इनमें से कोई अपने देश की आबरू ख़ुद ही लूट लेता है। ऐसे में इन्हें सज़ा देना ज़रूरी हो जाता है। हाईकोर्ट ने भी यही किया है, देखिए एक ख़ब : 


दुष्कर्मी जवानों की सजा बरकरार
लगभग 18 साल पहले बंगाल बार्डर पर स्थित एक गांव की गूंगी व बहरी लड़की से दुष्कर्म करने के मामले में नौकरी से हाथ धोने व सात साल की सजा पाने वाले सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के दो सिपाहियों को दिल्ली उच्च न्यायालय ने राहत देने से इंकार कर दिया है। न्यायमूर्ति प्रदीप नंदराजोग व न्यायमूर्ति सुनील गौड़ की खंडपीठ ने आरोपी भूषण सिंह व अवतार सिंह की याचिका को खारिज करते हुए कहा है कि तमाम तथ्यों से जाहिर है कि उन्होंने यह अपराध किया था।
अदालत ने उस दलील को भी खारिज कर दिया कि पीडि़ता ने उनको शिनाख्त परेड में ठीक से नहीं पहचाना था। अदालत ने कहा कि हो सकता है कि पीड़िता के गूंगी व बहरी होने के कारण वह अपनी बात को सही तरीके से न रख पाई हो। इतना ही नहीं, कोर्ट ने उस दलील को भी खारिज कर दिया कि घटना के दो दिन बाद क्यों शिकायत की गई। अदालत ने कहा कि दुष्कर्म के मामले में पीड़िता के परिवार को सामाजिक दबाव को देखना पड़ता है। इतना ही नहीं इस मामले में तो बीएसएफ के जवान शामिल थे। ऐसे में उनको जरूर इस बारे में सोचने में समय लगा होगा, लेकिन फिर भी उन्होंने घटना के अगले दिन ही गांव के प्रधान को बता दिया था और उसके एक दिन बाद शिकायत दर्ज हो गई थी।
अवतार सिंह व भूषण सिंह बीएसएफ की 55वीं बटालियन में बतौर कांस्टेबल बंगाल बार्डर पर तैनात थे। इन पर आरोप है कि इन्होंने एक गांव की गूंगी व बहरी लड़की से बीस अक्टूबर 1992 को दुष्कर्म किया। इस मामले में जनवरी 1993 में यह कहते हुए इनके खिलाफ जांच बंद कर दी गई थी कि इन्हें स्थानीय तस्करों के कहने पर फंसाया गया है। मगर बाद में फिर से जांच शुरू कर गई और जनरल सिक्योरटी फोर्स कोर्ट ने दस अक्टूबर 1996 को इन दोनों को नौकरी से बर्खास्त करते हुए सात-सात साल के कारावास की सजा दी थी। इसी आदेश को इन्होंने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
Source : http://in.jagran.yahoo.com/news/local/delhi/4_3_8025360.html

यह तो हुई दुष्कर्म की सज़ा लेकिन ध्यान इस पर भी दिया जाना चाहिए कि दुष्कर्म की नौबत क्यों आई ?
अक्सर ऐसा होता है कि नियम तो बना दिए जाते हैं लेकिन नियम बनाने वाले इनसान की ज़रूरतों से वाक़िफ़ ही नहीं होते। सुरक्षा बलों में तैनात जवानों की ड्यूटी ही ऐसी है कि उन्हें अपने घरों से बहुत दूर पोस्ट होना पड़ता है और इस पर भी को उन्हें चार-चार माह बाद छुट्टी मिल पाती है। विदेशियों से लड़ना आसान है लेकिन अपने शरीर में बनने वालों हॉर्मोन्स को हराना बहुत मुश्किल है। इसी के नतीजे में तरह तरह की शर्मनाक घटनाएं सामने आती रहती हैं। सैनिकों और अद्र्ध सैनिक बलों के जवानों का ध्यान पहले से बेहतर रखा जा रहा है लेकिन इस तरह की घटनाएं बताती हैं कि अभी भी कुछ और सुधार किए जाने की ज़रूरत है, ख़ास तौर से उनकी यौन ज़रूरतों को ध्यान में रखकर कुछ सुधार तुरंत किए जाने चाहिएं।

Wednesday, July 13, 2011

ग़द्दारों से पट गया हिंदुस्तान Ghaddar

कल मुंबई पर फिर आतंकवादी हमला हो गया है। अभी तक 20 लोगों के मारे जाने की सूचना आई है और 100 से ज़्यादा ज़ख्मी हैं। हमारी संवेदनाएं इनके साथ हैं और सारे देश की संवेदनाएं इनके साथ हैं। इस बार भी सुरक्षा व्यवस्था कड़ी करने और आतंकवादियों से कड़ाई से निपटने की बातें की जा रही हैं। मुंबई पर किए गए पिछले हमलों के बाद भी यही बातें की गई थीं। यह हमला बता रहा है कि बातों पर ढंग से अमल नहीं हो पाया है।
आतंकवादियों का असल काम लोगों को मारना नहीं होता। मात्र 20-30 लोगों को मारने से भारत की आबादी में कुछ भी कमी होने वाली नहीं है। दरअसल उनका मक़सद भारत के लोगों में एक दूसरे के प्रति अविश्वास और संदेह पैदा करना होता है। आतंकवादी हमलों के बाद जो लोग एक वर्ग विशेष के प्रति सरेआम संदेह व्यक्त करते हैं, दरअसल वे जाने-अनजाने आतंकवादियों के ‘अगले चरण का काम‘ ही पूरा करते हैं। आरोप प्रत्यारोप और संदेह भारतवासियों के प्रेम के उस धागे को कमज़ोर करता है जिससे सारा भारत बंधा है। इस धागे को कोई आतंकवादी आज तक कमज़ोर नहीं कर सका है और न ही कर सकता है। यही हमारी शक्ति है। इस शक्ति को खोना नहीं है।
देश के दुश्मनों के लिए काम करने वाले ग़द्दारों को चुन चुन कर ढूंढने की ज़रूरत है और उन्हें सरेआम चैराहे पर फांसी दे दी जाए। चुन चुन कर ढूंढना इसलिए ज़रूरी है कि आज ये हरेक वर्ग में मौजूद हैं। इनका नाम और संस्कृति कुछ भी हो सकती है, ये किसी भी प्रतिष्ठित परिवार के सदस्य हो सकते हैं। पिछले दिनों ऐसे कई आतंकवादी भी पकड़े गए हैं जो ख़ुद को राष्ट्रवादी बताते हैं और देश की जनता का धार्मिक और राजनैतिक मार्गदर्शन भी कर रहे थे। सक्रिय आतंकवादियों के अलावा एक बड़ी तादाद उन लोगों की है जो कि उन्हें मदद मुहैया कराते हैं। मदद मदद मुहैया कराने वालों में वे लोग भी हैं जिन पर ग़द्दारी का शक आम तौर पर नहीं किया जाता।
‘लिमटी खरे‘ का लेख इसी संगीन सूरते-हाल की तरफ़ एक हल्का सा इशारा कर रहा है :

उच्च स्तर पर बैठे एक राजनयिक और भारतीय विदेश सेवा की बी ग्रेड की अफसर माधुरी गुप्ता ने अपनी हरकतों से देश को शर्मसार कर दिया है, वह भी अपने निहित स्वार्थों के लिए। माधुरी गुप्ता ने जो कुछ भी किया वह अप्रत्याशित इसलिए नहीं माना जा सकता है क्योंकि जब देश को चलाने वाले नीतिनिर्धारक ही देश के बजाए अपने निहित स्वार्थों को प्रथमिक मान रहे हों तब सरकारी मुलाजिमों से क्या उम्मीद की जाए। आज देश का कोई भी जनसेवक करोडपति न हो एसा नहीं है। उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि और इतिहास खंगाला जाए और आज की उनकी हैसियत में जमीन आसमान का अंतर मिल ही जाएगा। देश के सांसद विधायकों के पास आलीशान कोठियां, मंहगी विलसिता पूर्ण गाडिया और न जाने क्या क्या हैं, फिर नौकरशाह इससे भला क्यों पीछे रहें।

नौकरशाहों के विदेशी जासूस होने की बात कोई नई नहीं है। जासूसी के ताने बाने में देश के अनेक अफसरान उलझे हुए हैं। पडोसी देश पाकिस्तान के लिए जासूसी करने के आरोप में पकडी गई राजनयिक माधुरी गुप्ता पहली अधिकारी नहीं हैं, जिन पर जासूसी का आरोप हो। इसके पहले भी अनेक अफसरान इसकी जद में आ चुके हैं, बावजूद इसके भारत सरकार अपनी कुंभकर्णीय निंद्रा में मगन है, जो कि वाकई आश्चर्य का विषय है। लगता है इससे बेहतर तो ब्रितानी हुकूमत के राज में गुलामी ही थी।

भारतीय नौ सेना के एक अधिकारी सुखजिंदर सिंह पर एक रूसी महिला के साथ अवैध संबंधों की जांच अभी भी चल रही है। 2005 से 2007 के बीच उक्त अज्ञात रूसी महिला के साथ सुखजिंदर के आपत्तिजनक हालात में छायाचित्रों के प्रकाश में आने के बाद सेना चेती और इसकी बोर्ड ऑफ इंक्वायरी की जांच आरंभ की। इस दौरान सुखजिंदर पर विमानवाहक पोत एडमिरल गोर्शकेश की मरम्मत का काम देखने का जिम्मा सौंपा गया था। सुखजिंदर पर आरोप है कि उसने पोत की कीमत कई गुना अधिक बताकर भारत सरकार का खजाना हल्का किया था।

बीजिंग में भारतीय दूतावास के एक वरिष्ठ अधिकारी मनमोहन शर्मा को 2008 में चीन की एक अज्ञात महिला के साथ प्रेम की पींगे बढाने के चलते भारत वापस बुला लिया गया था। भारत सरकार को शक था कि कहीं उक्त अधिकारी द्वारा उस महिला के मोहपाश में पडकर गुप्त सूचनाएं लीक न कर दी जाएं। सरकार मान रही थी कि वह महिला चीन की मुखबिर हो सकती है। 1990 के पूर्वार्ध में नेवी के एक अधिकारी अताशे को आईएसआई की एक महिला एजेंट ने अपने मोहपाश में बांध लिया था। उक्त महिला करांची में सेन्य नर्सिंग सर्विस में काम किया करती थी। बाद में अताशे ने अपना गुनाह कबूला तब उसे नौकरी से हटाया गया।

इसी तरह 2007 में रॉ के एक वरिष्ठ अधिकारी (1975 बेच के अधिकारी) को हांगकांग में एक महिला के साथ प्रगाढ संबंधों के कारण शक के दायरे में ले लिया गया था। उस महिला पर आरोप था कि वह चीन की एक जासूसी कंपनी के लिए काम किया करती थी। रॉ के ही एक अन्य अधिकारी रविंदर सिह जो पहले भारत गणराज्य की थलसेना में कार्यरत थे पर अमेरिकन खुफिया एजेंसी सीआईए के लिए काम करने के आरोप लग चुके हैं। रविंदर दक्षिण पूर्व एशिया में रॉ के एक वरिष्ठ अधिकारी के बतौर कर्यरत था। इस मामले में भारत को नाकमी ही हाथ लगी, क्योकि जब तक रविंदर के बारे में सरकार असलियत जान पाती तब तक वह बरास्ता नेपाल अमेरिका भाग चुका था। 80 के दशक में लिट्टे के प्रकरणों को देखने वाले रॉ के एक अफसर को एक महिला के साथ रंगरेलियां मनाते हुए पकडा गया। उक्त महिला अपने आप को पैन अमेरिकन एयरवेज की एयर होस्टेस के बतौर पेश करती थी। इस अफसर को बाद में 1987 में पकडा गया।

इस तरह की घटनाएं चिंताजनक मानी जा सकतीं हैं। देशद्रोही की गिरफ्तारी पर संतोष तो किया जा सकता है, पर यक्ष प्रश्न तो यह है कि हमारा सिस्टम किस कदर गल चुका है कि इनको पकडने में सरकारें कितना विलंब कर देतीं हैं। भारत पाकिस्तान के हर मसले वैसे भी अतिसंवेदनशील की श्रेणी में ही आते हैं, इसलिए भारत सरकार को इस मामले में बहुत ज्यादा सावधानी बरतने की आवश्यक्ता है। वैसे भी आदि अनादि काल से राजवंशों में एक दूसरे की सैन्य ताकत, राजनैतिक कौशल, खजाने की स्थिति आदि जानने के लिए विष कन्याओं को पाला जाता था। माधुरी के मामले में भी कमोबेश एसा ही हुआ है।

माधुरी गुप्ता का यह बयान कि वह अपने वरिष्ठ अधिकारियों से बदला लेने के लिए आईएसआई के हाथों की कठपुतली बन गई थी, वैसे तो गले नही उतरता फिर भी अगर एसा था कि वह प्रतिशोध की ज्वाला में जल रही थी, तो भारत की सडांध मारती व्यवस्था ने उसे पहले क्यों नहीं पकडा। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि भारत का गुप्तचर तंत्र (इंटेलीजेंस नेटवर्क) पूरी तरह भ्रष्ट हो चुका है। आज देश को आजाद हुए छ: दशक से ज्यादा बीत चुके हैं, और हमारे ”सम्माननीय जनसेवकों” द्वारा खुफिया तंत्र का उपयोग अपने विरोधियों को ठिकाने लगाने के लिए ही किया जा रहा है। क्या यही है नेहरू गांधी के सपनों का भारत!

लिहाज़ा भावुकता में बहकर अंधे न हों और बेबुनियाद शक न करें। चंद लोगों के कारण पूरे समुदाय की निष्ठा पर सवालिया निशान न लगाएं।

Friday, July 8, 2011

ख़ून बहाना जायज़ ही नहीं है किसी मुसलमान के लिए No Voilence

राई का पहाड़ बन गया, तिल का ताड़ हो गया। मुरादाबाद में केवल ‘एट्टीट्यूड प्रॉब्लम‘ के चलते पुलिस के अफ़सरान घायल हो गए और कई मुसलमान उनकी गोली का शिकार हो गए। वजह केवल यह थी कि पुलिस अपने पुलिसिया अंदाज़ में किसी मुल्ज़िम के घर पहुंची और दबिश के दौरान उसने घर का सामान जो फेंकना शुरू किया तो उसमें पवित्र क़ुरआन को भी फेंक दिया। इसके बाद मसला केवल उस मुल्ज़िम व्यक्ति का न बचा बल्कि गांव के सारे मुसलमानों का हो गया। पुलिस पार्टी चाहती तो माफ़ी मांग कर मसले को वहीं सुलझा सकती थी लेकिन ऐसा न हो सका। नतीजा यह हुआ कि पुलिस और पब्लिक दोनों ही घायल हो गए। पुलिस को क्या करना चाहिए था ?
यह बताने के लिए आला अफ़सरान मौजूद हैं लेकिन मुसलमान के लिए किसी का ख़ून बहाने की इजाज़त नहीं है। इसी विषय पर हमने एक पोस्ट लिखी है और इसे दो जगह पेश किया है :-



दरअस्ल यह पोस्ट हमने साहित्य प्रेमी संघ के लिए लिखी थी। इस संघ की स्थापना इंजीनियर सत्यम शिवम साहब ने की है और यह साहित्य सुमन उगाता है और ख़ुशबू फैलाता है। हमने हमेशा साहित्य की रचना तभी की है जबकि उसका कोई असर व्यक्ति के जीवन और उसके चरित्र पर पड़ता हो। मात्र मनोरंजन के लिए साहित्य लिखना हमारी नज़र में समय को बेकार गंवा देना है।
समाज में चारों ओर समस्याएं हैं, हमें उनके हल के बारे में सोचना चाहिए और ऐसा साहित्य रचना चाहिए जो सबको रास्ता दिखा सके।
एक नज़र आपको ‘ब्लॉग की ख़बरें‘ पर भी डालनी चाहिए, जो ब्लॉग जगत का सबसे पहला समाचार पत्र है और निष्पक्ष है।
ग़लत बात को ग़लत कहने में और धोखाधड़ी को उजागर करने में यारी और बिरादरी का कोई लिहाज़ नहीं करता। यहां आप अपने ब्लॉग का मुफ़्त प्रचार कर सकते हैं।

Sunday, July 3, 2011

नए ब्लॉगर मैदान में लाएगी हिंदी ब्लॉगिंग गाइड

हिंदी ब्लॉगिंग गाइड की तैयारी का मक़सद यह है कि नए ब्लॉगर्स को मैदान में लाया जा सके क्योंकि गुटबाज़ी, पक्षपात और कम पात्र लोगों को ईनाम से नवाज़े जाने के हादसों ने बहुत से पुराने मगर कमज़ोर हिंदी ब्लॉगर्स के क़दम उखाड़ दिए हैं।
कुछ लोग ब्लॉगिंग के मैदान में आए थे मिशन की ख़ातिर और फिर लग गए नोट बनाने में। माल के लालच में ये लोग अपना ईमान और ज़मीर तक गिरवी रख चुके हैं या हो सकता है कि उसे बिल्कुल ही बेच डाला हो ?
इसके बावजूद वे ख़ुद को किसी मसीहा की मानिंद ही पेश करते हैं।
उनकी अदा और अदाकारी से कोई भी भ्रम में नहीं पड़ता। अलबत्ता वे ख़ुद को ही फ़रेब दे रहे हैं। वे अपनी आय और अपने संबंधों के विस्तार के लिए ही ब्लॉगिंग कर रहे हैं। ब्लॉगिंग का इस्तेमाल आजकल निजी ख़ुशी के लिए ही ज़्यादा हो रहा है। इन लोगों को समाज के सरोकारों से कोई सरोकार ही नहीं है।
एक मुख्यमंत्री के ख़ून सने हाथों से ईनाम पाने के लिए पुराने मीडियाकर्मियों से लेकर न्यूमीडिया के फ़नकार तक सभी बिछे जा रहे थे। यह मंज़र भव्य था और सभी ने इसे देखा है। यही लोग एग्रीगेटर चला रहे हैं। ऐसे में ये किसी भी ऐसी आवाज़ को भला कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं, जो सच कहती हो।
ईमानदारी मुश्किल है, इसीलिए लोग बेईमान हो जाते हैं क्योंकि लोग ईमानदार बनकर ‘बहुमत‘ को अपने खि़लाफ़ करना नहीं चाहते।
झूठ-फ़रेब और दग़ा को साहित्यिक भाषा में कूटनीति कहा जाता है। अभी तक तो मशहूर और सफल हिंदी एग्रीगेटर्स कम या ज़्यादा इसी कूटनीति को ही अपनी नीति बनाए हुए हैं।
बेईमान बहुल लोगों की सेवा करते करते ईमानदार भी उनकी चपेट में आ जाते हैं। इसी के साथ अच्छे लोग भी ब्लॉगिंग कर रहे हैं। उनका दायरा और उनकी ताक़त बढ़ेगी तो ईमानदारी का चलन भी बढ़ेगा।
उम्मीद पर दुनिया क़ायम है।
एग्रीगेटर न हो तो भी ब्लॉगिंग की जा सकती है और लोग ब्लॉग्स तक पहुंचते भी हैं। गूगल ब्लॉगर्स को पाठक भी देता है बशर्ते कि लेख उपयोगी हो और वह ज़्यादातर लोगों की ज़रूरत को पूरा करता हो।
ब्लॉगिंग के ज़रिए से सच कहना आज आसान हो गया है। सच सामने आकर ही रहेगा। अब यह किसी के रोके से रूकने वाला नहीं है।
नए ब्लॉगर आएंगे तो हिंदी ब्लॉगिंग को एक नई ऊर्जा मिलेगी। लोग बढ़ेंगे तो हालात भी आज जैसे न रहेंगे। हिंदी ब्लॉगिंग गाइड लिखने का मक़सद यही है कि हिंदी ब्लॉगिंग को एक सार्थकता दी जाए। उसके ज़रिए से लोगों की सोच को बेहतर बनाया जाए।
हरेक हिंदी ब्लॉगर से इसमें सहयोग की अपील है।
शुक्रिया !