Monday, December 13, 2010

दोषी कौन ?, भगवान या इंसान The duty of man

सोलंकी साहब पत्रकार हैं । कुछ माह पहले वे खबरें लेने थाने गए तो मैं भी वहीं था ।
दीवान जी शर्मा का छेड़ने की ग़र्ज़ से वह बोले कि 'आज का अखबार देखो , अब तो बड़े क़ाज़ी साहब ने भी कह दिया है कि अगर अदालती आदेश के बाद भी पुलिस कोई कार्रवाई नहीं करती है तो हम कुछ नहीं कर सकते।'
शर्मा जी से पहले मैं बोला कि ' देने वाले ने एप्लिकेशन 'ख़ाली' दी होगी वर्ना तो वह खुद भी भ्रष्ट ही होगा ।'
वे तुरंत बोले-'आपकी बात सही है । कुछ लोग हमारे कस्बे के स्लॉटर हाउस पर स्टे ले आए । पशुओं का कटना बंद हो गया तो क़साई स्टे तुड़वाने पहुंचे तब क़ाज़ी साहब अपने प्रदेश में ही 'इंसाफ़ का दिखावा' किया करते थे ।
क़ाज़ी साहब ने उनकी अर्ज़ी ख़ाली देखते ही तुरंत ख़ारिज कर दी । टक्कर लगते ही क़साई तुरंत समझ गए कि पशु काटने हैं तो पहले ख़ुद कटना होगा , भेस क़ाज़ी का ज़रूर है लेकिन है उसमें है अपना ही भाई-बिरादर । अगली बार वे गए तो कायदे से गए और काम तुरंत हो गया । स्टे कैंसिल करते हुए क़ाज़ी साहब ने लिखा कि आदमी और गाय को छोड़कर जो चाहे काट सकते हो । 3 में काम हुआ ।'
शनिवार में वतन जाना हुआ तो तो एक हकीम साहब को भी कहते पाया कि 'भाई क़ाज़ी साहब ने तो आजकल हिला रखा है । बहुत ईमानदार हैं ।'
मैंने कहा-'जो अक़्लमंद होते हैं वे ईमानदार बन जाते हैं क्योंकि जो ईमानदार होते हैं वे भ्रष्टाचारियों से ज़्यादा कमाते हैं ।'
'कैसे भला ?'-हकीम साहब ने हैरानी से पूछा ।
मैंने बताया -'हरेक भ्रष्ट का एक रेट सैट है , कीमत मिलने पर काम की गारंटी है । उनसे कोई नहीं डरता। ईमानदार से हरेक डरता है । ये हर मामले में पैसा नहीं लेते । दस में से सात मामलों में ये ईमानदारी का फैसला देकर शोहरत कमाते हैं , छवि बनाते हैं , लोगों में दहशत पैदा करते हैं । कुछ को सख़्त सज़ाएं मिलती देखकर बाक़ी दूसरों को जेल जाने का यक़ीन पक्का हो जाता है , तब वे ऊंचे से ऊंचे सिफारिशी को उनके सामने झुकाते हैं और अपनी जान के बदले में बोली भी ऊंची लगाते हैं । तब क़ाज़ी साहब जैसे लोग अपने हाकिमों को ऑब्लाइज करते हुए उनकी जाँबख़्शी कर देते हैं । ऐसे 3 मामलों में ये ईमानदार इतना कमा लेते हैं जितना कि भ्रष्ट 50 मामलों में भी नहीं कमा पाते , रिलेशंस अलग से मज़बूत होते हैं ।
सच्चाई जानकर हकीम साहब को तगड़ा झटका ज़ोरो से लगा ।

अनैतिक है इंसान , पाक है भगवान
दुनिया एक पाठशाला है । यहाँ हरेक चीज और हरेक बात कोई न कोई सबक है ।
ये सबक़ भगवान स्वयं पढ़ाता है । जीवन के सबक़ समझने लायक़ बुद्धि और विवेक जैसे ज़रूरी गुण भी उसने इंसान को दिए और अपने ज्ञान के अनुरूप कर्म करने की शक्ति भी दी ।
जैसे बच्चे आमतौर पर स्कूल जाते तो हैं लेकिन उन्हें लगता यही है कि उन्हें स्कूल भेजकर उनकी माँ उनपर ज़ुल्म कर रही है । ज़्यादातर बच्चे खेलने और खाने में लगे रहते हैं और उस सबक़ पर ध्यान नहीं देते जिसके लिए उन्हें स्कूल भेजा गया है। बच्चों के कान तो छुट्टी की घंटी पर लगे रहते हैं । स्कूल से छुट्टी को वे नादान मुक्ति समझते हैं। यही बच्चे बड़े होते हैं लेकिन उनकी नादानी भी अब बड़ी हो जाती है। उनका खेलना और खाना भी बढ़ जाता है । मौत को मुक्ति समझ लिया जाता है । इस समझने को दर्शन और ऐसे समझदारों को दार्शनिक कह दिया जाता है । दार्शनिक भी खेलते हैं । बच्चे भी पहेलियां बूझकर खेलते हैं और दार्शनिक भी , बस बच्चों की पहेलियां छोटी होती हैं और दार्शनिकों की पहेलियां बड़ी। बचपन में बच्चों की जो बातें शरारत कहलाती थीं वे अब फ़साद का रूप ले लेती हैं । फिर फ़सादियों के गुट बनते हैं , वे अपने बीच से किसी बड़े फ़सादी को अपना प्रधान चुनते हैं । ये फ़सादी सिर्फ़ ज़मीन के ही नहीं बल्कि आसमान के भी टुकड़े कर डालते हैँ। पानी पर लकीर खींचना मुमकिन नहीं है लेकिन ये फ़सादी समुद्रों तक को बाँट लेते हैं और फिर ये दुनिया बनाने वाले को भी बाँटने की कोशिश करते हैं । उस अखंड को खंडित नहीं कर पाते तो उसके नामों को ही बाँट लेते हैं । कहते हैं भगवान मेरा है और अल्लाह तेरा है । फिर उसके नामों को भी बाँटते हैं । हर नाम का एक रूप बनाते हैं । फिर उसे सजाते हैं , उसके आगे नाच गा कर और तरह तरह के खेल करके अपना मनोरंजन करते हैं ।
दुनिया एक पाठशाला थी लेकिन इंसान उसे रंगशाला और बाज़ार बनाकर रख देता है। आज हर तरफ तमाशा है और हर तरफ बाजार है । हर चीज बिक रही है। चीजें ही नहीं खुद इंसान बिक रहा है । भगवान से जोड़ने वाली चीजें तक बेची जा रही हैं। योग का पेटेंट कराया जा रहा है । वेश्याएं भी अब योग करती देखी जा सकती हैं । योग की सी डी भी अब वही बिकती है जिसमें टाइट कपड़ों में मॉडल झुकती है ।
अमीर लोग इन मॉडल्स को साक्षात बुला लेते हैं और आम लोग फ़िल्में देखकर कल्पना में इनके पास चले जाते हैं। बच्चों के उत्पादन को रोका जाता है और संभोग को बढ़ाया जाता है। मज़े के लिए सेक्स और नशे की बाढ़ समाज में आ जाती है । जिसका कारोबार दुनिया में हर साल खरबों-खरब डॉलर का होता है। जो संभोग में समाधि के गुर सिखाते हैं ऐसे गुरू मार्ग दिखाते हैं। नशा सौ बुराईयों की माँ है लेकिन समाज को सुधारने का , उसकी सर्जरी का बीड़ा वे 'जवान' उठाते हैं जो खुद नशेड़ी हैं।
अनैतिक खुद हैं लेकिन ये भगवान को अनैतिक बताते हैं , जैसे ख़ुद हैं भगवान को भी वैसा ही मान बैठते हैं , लेकिन अभी भगवान के ऐसे भक्त ज़िंदा हैं जो नशा नहीं करते और नैतिक नियमों का पालन करते हैं । ऐसे सभी भक्तों को भगवान नैतिकता का स्रोत और आदर्श नज़र आता है ।
जो ख़ुद को  ही न पहचान पाया हो तो वह खुदा को क्या पहचानेगा ?
भगवान ने तो तुम्हें रूप बल बुद्धि सब कुछ दिया। तुम्हें शिक्षण और प्रशिक्षण दिया। तुम्हें रक्षक, पालक और न्यायपालक जैसे वे सम्मानित पद दिए जिन पर वह खुद आसीन है। अब तुम ही योग्यता अर्जित न करो, अपने फ़र्ज़ अदा न करो और दुनिया को तबाह कर डालो तो इसमें दोषी भगवान है या इंसान ?
अफ़सोस, निर्दोष भगवान को बुरा कहा जा रहा है और लोग चुप हैं जबकि इन्हें बुरा कहा जाये तो नाराज़ होकर खुद भी खुंदक में पोस्ट लिखते हैं और  दूसरों से भी अपील करते हैं कि वे भी उनके साथ मिलकर विरोध करें . अपने लिए बुरा सुन नहीं सकते और भगवान पर इलज़ाम लगते देखकर कुछ भी बुरा नहीं मानते ?
यह बेहिसी है ?
या बेगैरती है  ?
या उदारवाद ?
आखिर यह है क्या ?
जो भगवान से प्रेम करते हैं उनका आचरण तो हरगिज़ यह है नहीं ?

11 comments:

Aslam Qasmi said...

जो खुद ही न पहचान पाया हो वह खुदा को क्या पहचानेगा

Aslam Qasmi said...

डाक्‍टर साहब आप थाने में क्‍या कर रहे थे

Anonymous said...

चिटठाजगत ने आपके लेख के साथ लिखा है
18+ अपरिवारउपयुक्‍त लेख

Aslam Qasmi said...
This comment has been removed by the author.
Anonymous said...

चिटठाजगत ने आपके लेख के साथ लिखा है
18+ अपरिवारउपयुक्‍त लेख

रणबीर said...

यही अपरिवारउपयुक्‍त हैं आपके अहसास की परतें

DR. ANWER JAMAL said...

@ जनाब असलम साहब ! आपका शुक्रिया ।

DR. ANWER JAMAL said...

@ भाई रणधीर ! जो आपने लिखा है इसका मतलब जरा खोलकर तो समझाईये जनाब ।

एस एम् मासूम said...

good post

Ayaz ahmad said...

दुनिया एक पाठशाला है । यहाँ हरेक चीज और हरेक बात कोई न कोई सबक है ।
ये सबक़ भगवान स्वयं पढ़ाता है । जीवन के सबक़ समझने लायक़ बुद्धि और विवेक जैसे ज़रूरी गुण भी उसने इंसान को दिए और अपने ज्ञान के अनुरूप कर्म करने की शक्ति भी दी ।

Ayaz ahmad said...

nice post.