मेरे दिल में जगह बहुत है
देखिए मेरे दिल में आकर
जवाब दिया है माँगने पर
देखिए मेरे अहसास पे आकर
ये पंक्तियां बहन अपर्णा पलाश के ब्लाग पर लिखीं हैं , उनकी सुंदर कविता से मुतास्सिर होकर तुरंत , एक कमेंट के रूप में ।
एक भाई हैं जनाब डा. पवन कुमार मिश्रा जी , वे संयुक्त भाई हैं यानि वे मेरे भी भाई हैं और पलाश जी के भी । वे भी चाहते हैं कि मैं हम दोनों की संयुक्त बहन को , पलाश जी को जवाब ज़रूर दूं ।
इसी आग्रह के लिए उन्होंने अपने ब्लाग pachhuapawan.blogspot.com पर एक पोस्ट भी लिखी है और फिर अपने आग्रह को इतने सारे कमेंट्स में दोहराया कि पोस्ट हॉट ही कर डाली ।
मैंने रास्ते मेँ ही उनका प्यार भरा इसरार देखा तो वक़्त और हालात की इज़ाज़त न होने के बावजूद भी उन्हें एक छोटी सी टिप्पणी देकर मैंने यों कहा -
सर्व भूतों को आत्मवत् देखने वाले बहन अपर्णा समेत आप सभी बहन भाइयों को प्रणाम !
1. क्या विद्वानों ने बोलने से पहले ख़ूब अच्छी तरह सोचने के लिए नहीं कहा है ?
2. बहन अपर्णा जी ने अपना कमेँट मेरी एक पुरानी पोस्ट किया था जिन्हें मैं कम देख पाता हूँ ।
3. मैं कोशिश करता हूँ कि शेड्यूल को फ़ोलो किया जाय । दूसरे कुछ और लोगों के सवालात जवाब के मुंतज़िर थे ।
4. बहन अपर्णा ने भी जवाब के लिए कोई समय सीमा मुक़र्रर नहीं की थी .
5. आप भाई भी कह रहे हैं और कौआ भी ?
फ़िलहाल मैं रास्ते में हूँ , इससे ज़्यादा कलाम से माज़ूर हूँ .
उम्मीद है कि हालात को समझेंगे .
सत्यमार्गियों को उपहास और अपमान सहना ही पड़ता है, पहले भी ऐसा ही हुआ है और बार बार ऐसा ही होगा .
आपसे कोई शिकायत नहीं है ।
बात हमारी और आपकी चलती ही रहेगी .
सादर
वंदे ईश्वरम .
.......................
सनातन है इस्लाम , मेरा यही पैग़ाम
एक ईश्वर के हजारों नाम तो अकेले संस्कृत भाषा में ही हैं । उसी एक ईश्वर के नाम दुनिया की हरेक भाषा में हैं । उसके नाम लाखों हैं लेकिन वह ख़ुद एक है । उसी एक ईश्वर का एक नाम अल्लाह है , अरबी भाषा में और फ़ारसी भाषा में उसे ख़ुदा कहते हैं ।
हिंदू-मुस्लिम संतों ने भी यही कहा है क्योंकि हिंदू धर्मग्रंथों में भी यही लिखा है ।
उस एक ईश्वर ने मनुष्यों को जो ज्ञान दिया है , उसपर चलना मनुष्य का धर्म है ।
उसने मनुष्य को सदा एक ही ज्ञान दिया है , इसलिए मानव जाति का धर्म सदा से एक ही चला आ रहा है 'पूर्ण समर्पण भाव से ईश्वर की आज्ञा का पालन करना'।
जो सदा से चला आ रहा हो, उसे संस्कृत में 'सनातन' कहते हैं ।
'पूर्ण समर्पण भाव से ईश्वर की आज्ञा का पालन करना' अरबी में 'इस्लाम' कहलाता है ।
इस तरह जो भी ज्ञानी तत्वदृष्टि से देखेगा वह यही पाएगा कि सनातन और इस्लाम, एक ही धर्म के दो नाम हैं , दो अलग अलग भाषाओं में ।
सनातन और इस्लाम न तो दो धर्म हैं और न ही इनमें कोई विरोधाभास ही पाया जाता है । जब इनके मौलिक सिद्धांत पर हम नज़र डालते हैं तो यह बात असंदिग्ध रूप से प्रमाणित हो जाती है ।
ईश्वर को अजन्मा अविनाशी और कर्मानुसार आत्मा को फल देने वाला माना गया है । मृत्यु के बाद भी जीव का अस्तित्व माना गया है और यह भी माना गया है कि मनुष्य पुरूषार्थ के बिना कल्याण नहीं पा सकता और पुरूषार्थ है ईश्वर द्वारा दिए गए ज्ञान के अनुसार भक्ति और कर्म को संपन्न करना जो ऐसा न करे वह पुरूषार्थी नहीं बल्कि अपनी वासनापूर्ति की ख़ातिर भागदौड़ करने वाला एक कुकर्मी और पापी है जो ईश्वर और मानवता का अपराधी है, दण्डनीय है ।
यही मान्यता है सनातन धर्म की और बिल्कुल यही है इस्लाम की ।
अल्लामा इक़बाल जैसे ब्राह्मण ने इस हक़ीक़त का इज़्हार करते हुए कहा है कि
अमल से बनती है जन्नत भी जहन्नम भी
ये ख़ाकी अपनी फ़ितरत में न नूरी है न नारी है
.......................
जन्नत - स्वर्ग , जहन्नम - नर्क
ख़ाकी - माटी का पुतला , इंसान
नूरी - प्रकाशमान, जन्नती
नारी - नर्क का पात्र , यह शब्द अरबी भाषा के 'नार' से बना है जिसका अर्थ है 'आग', नर्क के लिए भी प्रयुक्त होता है ।
33 comments:
अमल से बनती है जन्नत भी जहन्नम भी
ये ख़ाकी अपनी फ़ितरत में न नूरी है न नारी है
बहुत खूब अनवर जमाल साहब
बहुत खूब अनवर जमाल साहब
शुक्रिया सय्यदी व मौलाई !
अल-इख़्वैन कलयदैन !!
जो सदा से चला आ रहा हो, उसे संस्कृत में 'सनातन' कहते हैं ।
'पूर्ण समर्पण भाव से ईश्वर की आज्ञा का पालन करना' अरबी में 'इस्लाम' कहलाता है ।
जो सदा से चला आ रहा हो, उसे संस्कृत में 'सनातन' कहते हैं ।
'पूर्ण समर्पण भाव से ईश्वर की आज्ञा का पालन करना' अरबी में 'इस्लाम' कहलाता है ।
जो सदा से चला आ रहा हो, उसे संस्कृत में 'सनातन' कहते हैं ।
'पूर्ण समर्पण भाव से ईश्वर की आज्ञा का पालन करना' अरबी में 'इस्लाम' कहलाता है ।
जो सदा से चला आ रहा हो, उसे संस्कृत में 'सनातन' कहते हैं ।
'पूर्ण समर्पण भाव से ईश्वर की आज्ञा का पालन करना' अरबी में 'इस्लाम' कहलाता है ।
जो सदा से चला आ रहा हो, उसे संस्कृत में 'सनातन' कहते हैं ।
'पूर्ण समर्पण भाव से ईश्वर की आज्ञा का पालन करना' अरबी में 'इस्लाम' कहलाता है ।
जो सदा से चला आ रहा हो, उसे संस्कृत में 'सनातन' कहते हैं ।
'पूर्ण समर्पण भाव से ईश्वर की आज्ञा का पालन करना' अरबी में 'इस्लाम' कहलाता है ।
sorry mitr technichali adhik comments ho gaye
mitr ichha ke wipreet technicali comments adhik ho gaye akshma karen
@ भाई बेनामी , कुछ ग़लतियाँ ऐसी होती हैं कि उनके करने वाले को न तो माफ़ी मांगनी चाहिए और न ही अपनी ग़लती से बचना चाहिए ।
फिर भी आपको माफ़ी मांगनी ही है तो उन ब्लागर्स से माफ़ी मांगिए जो किसी तमराज के लिए काम कर रहे हैँ ।
आपकी ग़लती से नुक़्सान उन्हीं का हुआ है ।
धन्यवाद !
शानदार. बशर्ते की कुछ अक़ल के अंधे 'नारी' का अर्थ 'औरत' न ले लें.
नारी - नर्क का पात्र , यह शब्द अरबी भाषा के 'नार' से बना है जिसका अर्थ है 'आग', नर्क के लिए भी प्रयुक्त होता है ।
nice post
जो सदा से चला आ रहा हो, उसे संस्कृत में 'सनातन' कहते हैं
'पूर्ण समर्पण भाव से ईश्वर की आज्ञा का पालन करना' अरबी में 'इस्लाम' कहलाता है
मै पहली बार आपके ब्लॉग पर आई हूं ...अच्छा लगा पढ़कर...ये झगड़े तो हमारे राजनेताओं की देन है वर्ना आवाम तो समझदार है फिर भी भड़क ही जाती है....जिसका इलाज भी कोई नहीं...अच्छी पोस्ट
http://veenakesur.blogspot.com/
बेहतरीन लेख
दिने फितरत , दिने कईइम , सनातन धर्म तथा दिने इस्लाम एक ही है
मेरे दिल में जगह बहुत है
देखिए मेरे दिल में आकर
जवाब दिया है माँगने पर
देखिए मेरे अहसास पे आकर
बहुत खूब, अच्छा लगा पढ़ करके कि , अनवर जी जैसा कट्टर इस्लामिक नेता भी भाई चारे कि बात कर रहें हैं. लेकिन एक बात जरुर कहना चाहूँगा, जब तक तेरा और मेरा ख़त्म नहीं होगा तब तक शायद संभव नहीं हैं.
बहुत अच्छा लगा यह पोस्ट पढ़ कर विशेष तौर पर इसलिए क्योंकि मेरे ज्ञान कोष मे वृद्धि हुई कफी इस पोस्ट के द्वारा। कुछ नए शब्द ज्ञात हुए, तो कुछ नई जानकारियां मिलीं।
नया शब्द मालूम चला संयुक्त भाई - अब तक तो मुझे मालूम था कि मेरी बहन का भाई स्वतः ही मेरा भाई है अथवा मेरा भाई स्वतः ही मेरी बहन का भाई है पर यह एक नया संबंध - बहुत खूब।
दूसरी जानकारी प्राप्त करके तो मैं भाव विभोर हो गया - अरबी मे ईश्वर को खुदा कहते हैं। फारसी मे कहते हैं यह तो मालूम था पर अरबी मे भी कहते हैं आज ही मालूम पडा, पर इसमे मुझे सबसे अच्छा यह लगा कि मेरे अरब प्रवास के दौरान मैने पाया कि वहाँ के नागरिक अपनी मातृभाषा के इस महत्वपूर्ण शब्द को नही जानते जबकि हमारे यहां के विद्वान जानते हैं कि यह उनकी ही भाषा का शब्द है, ऐसे मे इन ज्ञानियों के ऊपर मुझे अभिमान होना स्वाभाविक ही है।
अंत मे एक निवेदन - जब मुझे आपके कुतर्कों मे कोई रुचि नहीं है (जिससे इस पोस्ट मे पूरी तरह से परहेज किया गया है - एक अच्छा कदम देखते हैं कब तक चलता है) तो क्यों मुझे मेल करते हो - देखो व्यर्थ मे तुम्हारे अधकचरे ज्ञान की पोल खुल गई।
हा हा हा हा
बड़े दिनों के बाद इन के ब्लॉग पर आया तो इन की पोल खुलते देखा
रविन्द्रनाथ जी आप भी कहा इन की पोल खोलने में लग गए .इन को खुश होने दीजिये . मैं कुछ भी इस पोस्ट के बारे में नही कहूँगा क्यों की
'हम बोलेगा तो बोलेगा की बोलता है
अभिषेक जी जब से सुज्ञ जी ने कहा तब से मैने यहाँ आना छोड दिया था पर यह बंधु मुझे लगातार अपनी पोस्ट मेल किये जा रहे थे, तो मैने कहा कि इनको आईना दिखा ही दूँ।
@ रविंद्र जी ! सनातन धर्म में ध्यान का बड़ा महत्व है क्योंकि ध्यान से ही ज्ञान मिलता है लेकिन आप मेरे लेख पर ध्यान नहीं देते , मुझे आपसे यही शिकायत है , और आपको भी मुझसे शिकायतें इसी वजह से पैदा होती हैं कि आप ध्यान नहीं देते ।
मैंने यही लिखा है कि ईश्वर को फ़ारसी भाषा में ख़ुदा कहते हैं लेकिन आपको नज़र ही नहीं आ रहा है क्योंकि मन में पूर्वाग्रह लेकर जल्दबाज़ी में पढ़ रहे थे आप । आपने यह नहीं देखा कि आपसे पहले टिप्पणी करने वालों को भी ठीक ठाक जानकारी है । बहन वीना जी तो एक शायर हैँ एक ब्राह्मण परिवार का हिस्सा भी । उन्होंने भी कोई कमी नहीं बताई इस लेख में । यह लेख उन्हें पसंद आया और आप मेरी खिल्ली उड़ा रहे हैं , अपने मन के टेढ़ के कारण ।
मन एक दर्पण होता है , उर्दू में इसे आईना कहते हैं । आपने मुझे जिस आईने में देखा है वह टेढ़ा है मेरे भाई ।
कबीर दास जी भी 'फिरा न मन का फेर' कहकर बता गए हैं कि यह काम थोड़ा मुश्किल है , लेकिन आप विद्वान हैं , आपके लिए यह सरल है ।
मेरा ज्ञान कम है । मैं भी अभी सीख ही रहा हूँ । इसीलिए लोगों के सामने मैं वही बात रखता हूँ जो ज्ञान सागर की गहराई उतरे हुए लोगों ने कही है ।
आपको शिकायत है तो आपका ईमेल एड्रेस कॉन्टेक्ट लिस्ट से डिलीट कर दिया जाएगा ।
मैं अपने लहजे की तल्ख़ी को दूर करने की कोशिश कर रहा हूँ क्योंकि यह अच्छी बात नहीं है । यह बेवजह दुख देती है , ख़ुद को भी और आप जैसे भाईयों को भी , जबकि आपको दुख पहुंचाना मेरा मक़सद नहीं है ।
आप आए , मैँ आपका आभारी हुँ और सदा आपको अपने साथ देखना चाहता हूँ । साथ न आ सकें तो अपने पास देखना चाहता हुँ क्योंकि दूरियां भ्रम और नफ़रतें बेबुनियाद हैं , ऐसा मेरा मानना है ।
प्यार के फूल खिलाओ कि फ़ज़ाएं महकें
दिल की उजड़ी हुई बस्ती को बसा दो लोगो
इससे पहले कि मर्ज़ हद से सिवा हो जाए
है अभी वक़्त दवाओं का, दवा दो लोगो
@ अभिषेक जी ! आप यों ही सदा हंसते मुस्कुराते रहें , दयालु दाता अल्लाह से मैं यही दुआ मांगता हूँ ।
काल जीवन है । आपने अपने जीवनकाल का एक अंश हम पर ख़र्च किया , यह आपका प्रेम है ।
मैं आपके प्रेम का सदैव आभारी रहूंगा ।
हमने कुरआन ओ गीता से यही सीखा है
दर्स इख़लास का दुनिया को पढ़ा दो लोगो
नोटः बहन पलाश जी और भाई पवन जी अभी तक नहीं आए , जबकि दोनों ही जवाब के लिए जल्दी मचा रहे थे । इस पोस्ट पर आना उनका नैतिक दायित्व है । मैं उनकी असहमति का भी सम्मान करूँगा और यदि ईश्वर और धर्म के एकत्व में विश्वास करना वे मेरी ग़लती सिद्ध करते हैं तो मैं अपनी गलती तुरंत सुधार लूंगा , पर एक बार वे आएं तो सही ?
जनाब जमाल अब आप अपने इरादे जरा स्पष्ट शब्दों में बता दे.
दो दिन इंटरनेट से दूर रहा इसलिए थोड़ी देर...
आप मुझे सीधे शब्दों में जवाब दे
बात को घुमाने फिराने से कोई फायदा नही
आप सिर्फ दो शब्द बोलिए हा या ना
अगर ऐसा नहीं करते तो मै सिर्फ आपको बडबोला ही समझूंगा
सनद रहे हां या ना
-----------
हां या नहीं में जवाब दे (केवल हा या नहीं )
१. सम्पूर्ण भारत इसलाम का अनुयायी बन जाय
२. आपने एक बार टिप्पणी की थी कि ओबामा की दादी को सम्पूर्ण विश्व के लिए यही दुआ मांगनी चाहिए.(शायद तौसीफ जी की पोस्ट थी जिसमे ओबामा की दादी चाहती थी की ओबामा इसलाम कबूल करले). आपकी दिली इच्छा पूरे विश्व को इसलाममय देखने की है.
मेरे कमेन्ट उसी रूप में प्रदर्शित कीजियेगा जैसे मैंने भेजा है कट पेस्ट करने की जरूरत नही
--
@ DR. PAWAN KUMAR JI !
देर आयद दुरूस्त आयद
और
आप आए बहार आई
दोनों ही कहावतें इस मौक़े पर चरितार्थ होती हैं .
1, क्या कमेँट को भी एडिट किया जा सकता है ?
2, आपने सवाल दो किए हैं या एक ?
3, मुझे हां या न में जवाब 2 बार देना है या 1 बार ?
4, जवाब हां न में ही देना ब्लागिंग का कोई रूल है या आपकी ज़बर्दस्ती ?
5, भाई तौसीफ़ जी की पोस्ट पर मैंने जो कहा है वह बिल्कुल स्पष्ट है । उसके बारे में यदि आप अधिक जानकारी चाहते हैं तो कृप्या उसे उद्धृत करते हुए सवाल करें ताकि ईश्वर, धर्म , वसुधा और मानवजाति के एकत्व में विश्वास रखने वाला यह सत्यसेवी आपको भली प्रकार संतुष्ट कर सके ।
बहन पलाश जी से भी इस ज्ञान यज्ञ में आने हेतु पुनः सादर विनम्र विनती करता हूं ।
ईश्वर की इच्छा पूर्ण हो !
मुझे इसी किस्म के उत्तर की उम्मीद थी
आप हा या ना में जवाब दे नहीं सकते है. इससे आप जो है वह सत्य पूरी दुनिया के सामने आ जाएगा.
चलिए छोडिये....
सिर्फ एक सवाल का जवाब चाहिए
क्या आप सम्पूर्ण विश्व को इसलाम माय देखना चाहते है?
हा या ना में जवाब देने से स्पष्टवादिता झलकती है
फिर अनुरोध है कि हा या ना में जवाब दे
जमाल जी, आपसे सटीक उत्तर तो मिलने की उम्मीद तो हम छोड बैठे ।
खुद पर अफसोस हुआ कि ये कैसे ब्लाग जगत में जा बैठे
कितना कुछ कहने और लिखने को तो लोग लिख देते है
पर साफ सटीक बातों से बच बच कर ही निकल लेते है
हमने तो सदा से ही बस एक बात ही जानी है
जो माने समझे इंसानियत बस एक वो ही ज्ञानी है
अल्लोपनिषद की चंद बाते आपने लिखी , और पढने की जिज्ञासा प्रबल हुयी
अगर आप उसकी प्रतिलिप कहाँ उपलब्ध हो सकती है , यह बता दे तो आपकी बहुत महानता होगी
ताकि हम पढ कर समझ ले और आपको बार बार उत्तर देने के लिये कह कर परेशान ना करें
अब यह कह कर मुझे आप निराश नही करेंगें कि अल्लोपनिषद मुझे कहाँ से पढने को मिल सकता है - यह आप नही जानते
धन्यवाद
@ डाक्टर पवन कुमार मिश्र जी !
हां, सनातन धर्ममय देखना चाहता हूं सारे विश्व को मैं।
अभी तक मेरे मन में तुम्हारे प्रति तुम्हारे इरादे को लेकर संशय था लेकिन भेड़ की खाल में भेडिये ने अपना मुखौटा उतारा तो सही.
मुझे कपट अच्छा नहीं लगता जो करना हो सामने करो
अब सही है
मुझे अब तुमसे कोई गिला नहीं है.
'मूरख ह्रदय न चेत जाऊ गुरु मिलई ब्रम्ह सम'
बी एन शर्मा ही तुम्हारे पागलपन का इलाज़ कर सकता है
१----"यही पाएगा कि सनातन और इस्लाम, एक ही धर्म के दो नाम हैं"
...सनातन किसी धर्म का नाम नहीं है अपितु हिदू धर्म ही सनातन ( =आदि, सर्वप्रथम ) है , इस्लाम नया ...अतः एक ही धर्म के दो नाम नहीं हैं ...सही कहा इकबाल ने ...बुनियादी तौर पर सभी धर्मों के नियम-शिक्षा एक होंगे..परन्तु अमल में अंतर से झगड़े होते हैं...क्योंकि व्यवहार में तो अमल ही आता है....
२ ---"नारी - नर्क का पात्र , यह शब्द अरबी भाषा के 'नार' से बना है जिसका अर्थ है 'आग', नर्क के लिए भी प्रयुक्त होता है । " ( शायद बाइबिल में भी कुछ ऐसा ही कथन है ?)
.....यही बुनियादी फर्क है हिन्दू-शास्त्र- ज्ञान-विचार व अरबी-सोच-ग्रंथों में ....संस्कृत में नार का अर्थ = जल( जीवन धारा ) ..नारायण == जल पर अयन, स्थित- ईश्वर ....नर = नार से उत्पन्न ( विज्ञान व वैदिक दर्शन में जीव की रचना जल से हुई )...नारी = नर की सद्य-शक्ति ..
----है न विचार व अमल दोनों में जमीन- आसमान का फर्ख ...वैज्ञानिक--अवैज्ञानिक का फर्क..
@ Dr. Shyam Gupta ji !
सनातन है समर्पण और आज्ञापालन की रीत
ईश्वर सदा से है और एक ही है। पूर्ण समर्पण भाव से उसकी आज्ञा का पालन ही धर्म है और यह धर्म आज से नहीं है बल्कि सनातन काल से है।
इस्लाम का अर्थ है समर्पण और आज्ञापालन।
दरअसल इन शब्दों से इनके अर्थ का ग्रहण करना चाहिए लेकिन लोगों ने इन्हें लेबल बना दिया है।
चाहे कोई ऐसे दर्शन पर चलता हो जो कि अभी कल ही पैदा हुआ है लेकिन वह खुद को सनातन धर्मी कहता है तो समाज उसे सनातन धर्मी ही मान लेता है।
ऐसे ही चाहे एक आदमी पूरे दिन ईश्वर की आज्ञा का उल्लंघन ही करता रहता हो लेकिन वह खुद को मुस्लिम कहता है तो समाज उसे मुस्लिम मान लेता है।
अपने हिंदू भाईयों के बारे में हम कुछ कहेंगे तो वे इसे अन्यथा ले सकते हैं लिहाज़ा यहां हम अपने मुसलमान भाईयों के आचरण की एक मिसाल लेते हैं।
दरअसल यह दो टिप्पणियों का संपादित अंश है, जिसे हमने वर्ष 2010 ई. में तहरीर किया था।
धर्म का दावा करने वालों की हक़ीक़त
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