Thursday, December 30, 2010

नफ़रत से भरे मीडियाकर्मियों का एक सांकेतिक मनोविश्लेषण Media, my business part 1

प्यारी बहन दिव्या जी ! आपका नाम भी सुंदर है और उपनाम भी और आप ख़ुद भी । ऐसा मैंने हमेशा ही कहा है । सुंदरता के साथ आपमें बुद्धिमत्ता भी है और उत्साह भी और इन सबके साथ है आपमें अपने देश और समाज के लिए कुछ करने का जज़्बा भी है और इस रास्ते में आने वाली मुश्किलों का सामना करने के लिए फ़ौलादी हौसला भी। इसीलिए मैंने आपको 'अमन के पैग़ाम' ब्लाग पर ब्लाग संसार की पहली लौहकन्या का खिताब भी अता किया है जिस पर आपके किसी Follower तक ने भी आपको मुबारकबाद नहीं दी , यहाँ तक कि मेरे भाई अमित जी तक ने भी नहीं ।
आपमें ख़ूबियां केवल इतनी ही नहीं बल्कि इनसे कहीं ज़्यादा हैं । आपको 'सजेशन ट्रिक' के जरिए अपने रूट से डायवर्ट नहीं किया जा सकता और न ही आप मतभिन्नता ज़ाती रंजिश और बायकॉट तक ही ले जाती हैं । जबकि इस विषय में काफ़ी उम्रदराज़ बुज़ुर्ग तक ग़च्चा खा चुके हैं , ख़ासकर मेरे बारे में । लेकिन आपने मेरी बात का कभी बुरा नहीं माना और न ही मेरे ब्लाग पर ही आना छोड़ा। इसका मतलब है कि हमारे संबध सामान्य हैं ।

आज भी मैंने हमेशा की तरह आपका ब्लाग देखा और आपकी ताजा पोस्ट में एक अंतर्विरोध देखा है । उसी पोस्ट के बारे में मैं आपसे चंद सवाल पूछना चाहता हूँ । सवाल सामान्य हैं लेकिन एक डर है कि कहीं आपको बुरा न लग जाए । हरेक के बुरा मानने की तो मैं खुद परवाह नहीं करता लेकिन जिन्हें मैं सराहता हूं , उनके जज़्बात का खयाल रखने की कोशिश मैं जरूर करता हूँ ।
अगर आप नाराज़ न होने का आश्वासन दें तो मैं अपने सवाल आपके सामने पेश करूं वर्ना तो जाने दूंगा क्योंकि सवाल बहुत अहम नहीं हैं ।

कल मैंने अपनी पोस्ट में बहन दिव्या जी से यह निवेदन किया था । चूंकि उन्होंने मेरे निवेदन का अभी तक कोई उत्तर नहीं दिया है इसलिए मैं उनसे अभी कोई सवाल भी नहीं करूंगा ।
इस पोस्ट में कोई सवाल नहीं किया गया है । आप देख सकते हैं यह पूरी पोस्ट बहन दिव्या जी की तारीफ से भरी हुई है । बेशक इसे एक अच्छी पोस्ट कहा जाना चाहिए लेकिन जिन लोगों के दिलों में दुश्मनी और नफरत हो , ऐसे अच्छे लेख पर भी उनसे कोई सराहना नहीं मिल सकती क्योंकि अगर उन्होंने स्वीकार कर लिया कि सवाल पूछने से पहले इजाजत लेना , तारीफ करना अनवर जमाल का सद्गुण है तो उनका तो वह सारा मिशन ही चौपट हो जाएगा जो कि मुसलमानों की छवि बिगाड़ने के लिए वे बरसों से चलाते आ रहे हैं ।
जनाब रोहित साहब (बोले तो बिंदास वाले) बहन दिव्या जी के ब्लाग पर कह रहे हैं कि मैं अनवर जमाल की पोस्ट पढ़कर आ रहा हूं। उनकी पोस्ट में अंतर्विरोध है।
मैं उनकी बात पर मुस्कुराकर रह गया ।
बहन दिव्या जी ने भी उनसे न पूछा कि भाई उस पोस्ट में तो उन्होंने न कोई मुद्दा उठाया है और न ही कोई सवाल किया है । उसमें तो किसी का विरोध तक नहीं है फिर अंतविरोध कहां से आ गया ?
चापलूसी और नफ़रत की भी हद है ।
मेरे एक पुराने परिचित बंधु हैं । मेरी टिप्पणी को आधार बनाकर वे भी दिव्या जी के कान भरते हुए देखे जा सकते हैं , उन्हें आपत्ति है कि मैंने दिव्या जी को मेनका जैसा सुंदर क्यों कह दिया ?
चलिए , उन्होंने कहा सो कहा । वे तो वेद पुराणों तक की बात को बकवास मानते हैं। फिर मेरी बात पे आपत्ति करने का उनका फ़र्ज़ भी है क्योंकि वे 'राष्ट्रवादी' हैं और आजकल मुसलमानों को किए बिना राष्ट्रवादी सा दिखना मुमकिन नहीं है । ये बंधु मेरे विरोधी हैं लेकिन चापलूस क़िस्म के नहीं हैं

चापलूस तो शायद रोहित जी भी न हों लेकिन उन्होंने मराठी बंधु को पछाड़ने के लिए पहले तो उन्होंने दिव्या जी दंडवत आदि करके लुभाया और फिर ख़ुद को बहन दिव्या जी की नज़र में उनका बहुत बड़ा हमदर्द साबित करने के लिए मुझसे भिड़ गए ।
(हिंदी फिल्मों का घिसा पिटा फ़ॉर्मूला , मनोविज्ञान की समझ रखने वाली दिव्या जी भी इनके सर्कस देखकर ज़रूर हंसती होंगी । ये लाइनें लिखते हुए खुद मेरे ही पेट में बल पड़े जा रहे हैं ।)

बहरहाल (हंसी रोककर) , रोहित जी ने कहा कि 'जो बहन की सुंदरता की उपमा मेनका से दे उसे भारतीय सभ्यता और संस्कार का क्या पता ? इनकी और इन जैसों की सोच पर लानत ।'
ऐसे ऐसे लोग मीडिया में आ गए हैं , पत्रकार बनकर बैठ गए हैं बल्कि रोहित जी तो अभिमन्यु की तरह गर्भ में भी पत्रकारिता का ही ज्ञान अर्जित करते होंगे क्योंकि वे ख़ुद बताते हैं कि अपने पिता जी के पत्रकार होने के कारण आंख खुलते ही पत्रकारिता का माहौल देखा । इतने लंबे समय के शिक्षण लेने और हिंदुओं के दरम्यान रहने के बावजूद बल्कि ख़ुद हिंदू होने के बावजूद भी उन्हें यह तक नहीं पता कि मेनका किसी वेश्या का नहीं बल्कि स्वर्ग की एक अप्सरा का नाम है । सुंदरता की उपमा देने के लिए मेनका का नाम लिया जाता है क्योंकि स्वर्ग की अप्सराओं की ख़ूबसूरती अतुलनीय मानी जाती है और मेनका को सभी अप्सराओं में प्रमुख माना जाता है । यही वजह है कि हिंदू अपनी बेटियों का नाम बेहिचक रखते हैं और प्राय: ये नाम पंडित जी की सलाह के बाद या उनके सुझाव पर ही रखे जाते हैं क्योंकि पंडित जी ही नवजात कन्या की कुंडली बनाते हैं, उनकी राशि और नक्षत्र देखकर उसके नाम का प्रथम अक्षर ज्ञात करके उसके नाम का निर्धारण करते हैं । अगर मेनका या मेनका का नाम घृणित होता तो कोई पंडित सवर्ण समाज को यह नाम रखने की सलाह हरगिज़ न देता और न ही ऐसी घृणित सलाह के बदले में उसके यजमान उसे दक्षिणा , भेंट और उपहार ही देते । हिंदू समाज में मेनका नाम का सामान्य प्रचलन यह सिद्ध करता है कि अपनी बेटी का नाम मेनका रखना एक पुनीत कार्य है क्योंकि नामकरण संस्कार हिंदुओं के सोलह पवित्र संस्कारों में से एक है । इस अवसर पर बहुत से रिश्तेदार और परिचित भी इकठ्ठा होते हैं । नाम में कुछ भी बुराई होती तो कोई तो ऐतराज़ करता ।
रोहित जी का ऐसे पुनीत नाम पर ऐतराज़ करना या तो हिंदू साहित्य और संस्कारों सिर्फ़ उनकी अज्ञानता को दर्शाता है या फिर मुसलमानों के प्रति या सिर्फ़ मेरे प्रति उनके विद्वेष को। मीडिया में ऐसे लोग हैं यह चिँता का विषय है।
[...जारी]

16 comments:

Mithilesh dubey said...

नव वर्ष की हार्दिक बधाई ।

((1947 से अब तक)) हाँ अगर आप हैं नाखूश, आप हैं हताश राजनीतिज्ञों के रवैये से तो मन में मत रखिए अपनी बात, करिए उसे खूलेआम ताकि सच्चाई से रुबरु हो हम । गाँव हो या कस्बा या शहर लिख भेजिए सच्चाई हमें और निकलाइए राजनीतिक भड़ास अपने इस मंच पर । लिख भेजिए कोई भी सच्चाई जो करे बेपर्दा राजनीति को । हमारा पता है mithilesh.dubey2@gmail.com तो आईये हमारे साथ http://rajnitikbhadas.blogspot.com पर

Anonymous said...

डा. जमाल साहब,
गुजरे एक साल में आपने ब्लॉग वर्ल्ड में काफी कुछ खट्टा मिट्ठा झेला है. मुझे आप सुलझे इंसान मालुम पड़ते हैं मगर ब्लॉग में उलझ कर रह गए हैं. अच्छा होगा आप आइन्दा से व्यक्तिगत लोगों के नाम पर पोस्टें न बनाये. आप सिर्फ अपने मौलिक विषयों पर लिखें, पढने वाले जरुर पढेंगे.

Man said...

वन्दे इशवरम

Satish Chandra Satyarthi said...

Anonymous जी की बात से एक हद तक मैं भी सहमत हूँ.. छोटी-छोटी व्यक्तिगत बातों पर अपना लेखन और वक्त ज़ाया करने को मैं भी सही नहीं मानता हूँ..
नववर्ष आपके और आपके सभी अपनों के लिए खुशियाँ और शान्ति लेकर आये ऐसी कामना है
मैं नए वर्ष में कोई संकल्प नहीं लूंगा

DR. ANWER JAMAL said...

@ मान जी ! आपका सादर स्वागत है । आपके अंदर आया रचनात्मक परिवर्तन मेरी आशा के दीप को रौशन रखने के लिए काफ़ी है । मैँ आपकी हिम्मत की दाद देता हूं क्योंकि अपनी आदत और अपना नजरिया बदलना हरेक के बस की बात नहीं होती । आपकी मिसाल आज मैं इस वर्ष की आखिरी और एक अहम पोस्ट में दूंगा । यह पोस्ट मैं बहन दिव्या जी की उस आपत्ति के उत्तर में लिख रहा हूँ जिसमें वे अपने ब्लाग पर मुझ पर ऐतराज कर रही हैं कि मैंने उन्हें बहन क्यों कह दिया ?

वंदे ईश्वरम्

DR. ANWER JAMAL said...

@ जनाब सतीश चंद्र सत्यार्थी जी ! Anonymous जैसे लोग सार्वजनिक रूप से तो मेरी सोच और मेरी समझ पर लानत भेजकर दिव्या जी की और अन्य ब्लागर्स की नज़र में अपना रूतबा बुलंद करते हैं और फिर बात अपने खिलाफ जाती देखकर तारीफ करके आदमी का रुख मोड़ने की कोशिश किया करते हैं । ये लोग सामने आकर संवाद करने से कतराते हैं क्योंकि ये जानते हैं कि इनका नजरिया भी इनकी नफरत की तरह बेबुनियाद है ।
आपको भी यह जान लेना चाहिए कि यह संवाद बेशक रोहित जी की टिप्पणी को आधार बनाकर किया जा रहा है लेकिन दरअस्ल यह मीडिया में मौजूद उन लोगों की प्रवृत्ति को बेनक़ाब करता है जो एक जायज बात के कहने वाले पर भी मात्र किसी की ख़ुशामद या अपनी नफरत के चलते ऐतराज करते रहते हैं । मुसलमानों की छवि बिगाड़ने में ऐसे ही संघनिष्ठ लोगों का बड़ा हाथ है ।

मेरा संबोधिन चाहे एक व्यक्ति से हो लेकिन जिस विषय पर चर्चा हो रही होती है , उसका संबंध व्यापक हितों से होता है । इसलिए आपसे अनरोध है कि आप मेरे गुज़श्ता और हालिया तमाम लेखों को इसी कोण से देखने का प्रयास करें ।

DR. ANWER JAMAL said...

., हमारे समाज में मेरे जैसे लोग Rare cases नहीं हैं ।
जबकि यह भी सच है कि सारा समाज नफ़रत में अंधा नहीं हुआ है और न हो सकता है ।सत्पुरूषों के उपदेश हमारे देस के मिज़ाज का दर्पण भी है कि कैसे अलग अलग रंग , नस्ल और मान्यताओं के लोग आपस में इंसानी मुहब्बत के धागे से बंधे हुए हैं
और बंधे रहना चाहिए । साथ ही यह भी सच है कि जो लोग आस्था के धंधेबाज़ों के फेर में पड़कर नफ़रत में अंधे हो जाते हैं वे उस धर्म के मर्म से हमेशा ख़ाली हुआ करते हैं जिसके नाम पर वे मालिक के बंदों का ख़ून मिट्टी में मिलाया करते हैं ।

अमन के लिए सक्रिय होना वक़्त की ज़रूरत है
हमें नेकी पर चलने के लिए नेकी और बदी के फ़र्क़ की तमीज़ दरकार है और एक
ऐसे आदर्श व्यक्ति की ज़रूरत है , जिसने नेकी और इंसानियत का , समता, न्याय और नैतिकता का केवल उपदेश ही न दिया हो इन तमाम ख़ूबियों का वह ख़ुद एक ऐसा नमूना हो की
उसने दूसरों से जो कहा हो , पहले खुद उसे दूसरों से बढ़कर किया हो. समाज में उन अच्छाईयों को क़ायम किया हो ताकि लोगों को पता चले कि आख़िर वे सन्मार्ग पर क्यों और कैसे चलें ?

DR. ANWER JAMAL said...

@ Anonymous ! अपने तास्सुब के चलते जवान से लेकर बूढ़ों तक ने, प्रोफ़ैसर से लेकर इंजीनियर तक ने , हरेक पेशे , लिंग और आयु के छिपे और खुले वर्णवादी और बौर्ज़ुआ प्रवृत्ति के लोगों ने मेरी छवि पर इतने प्रहार किए हैँ , इतने आरोप लगाए हैं कि आपको भी मेरी सराहना करने के छिपकर बोलना पड़ रहा है । हालांकि मैं जानता हूं कि आप कौन हैं ?

सत्य को जानने के बाद उसका साथ दिया जाए यह हक़ बनता है सत्यवादी सुधारक का ।
वर्ना राष्ट्रीय चरित्र में कभी सकारात्मक परिवर्तन नहीं आ पाता । भारत की दुदर्शा में आप जैसे स्वहितचिँतक लोगों के समूह की निष्क्रियता का बड़ा योगदान है ।
समाज के व्यापक हितों से जुड़े मेरे लेख आप जैसे लोगों ने नज़रअंदाज़ किए हैं।
नामुराद बीमारी एड्स से मुक्ति के लिए लिखे गए लेख का हश्र देखकर आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि मेरे साथ
क्या किया रहा है ?

@ मिथिलेश दुबे जी ! आपका सादर स्वागत है । मैं आपका और सत्यार्थी जी दोनों का लेख पढ़ने के लिए समय ज़रूर निकालूंगा , इंशा अल्लाह !

Satish Chandra Satyarthi said...

आप जिस तरह साफगोई और पूरे आत्मविश्वास के साथ अपनी बात को रखते हैं.. वह वाकई काबिले तारीफ़ है.. अच्छा लगा कि आपने मेरी बात को गलत नहीं समझा, बुरा नहीं माना.. मुझे नहीं लगता कि आपके ब्लॉग पर किसी को पहचान छुपाकर बोलने की जरुरत होनी चाहिए.

Thakur M.Islam Vinay said...

हम सब एक पिता आदम की संतान हैं आपस में खुनी रिश्ते के भाई और बहन लगते हैं अगर किसी को सर या मेडम कह कर पुकारा जाये तब अच्छा जरुर लगता है मगर भाई या बहन अगर कहते हैं तब अपनापन लगता है

S.M.Masoom said...

नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं

Rohit Singh said...

जमाल साहब आफकी दोनो पोस्ट पढी। मगर ममझ नहीं आता कि हूंसी या अपने ही हमवतन की ऐसी बातों पर शोक करुं। आपms ऐसी बचकानी पोस्ट की उम्मीद नहीं थी। किसी भी चीज को घूमा कर व्यक्तिगत बननाने में माहिर होते जा रहे हैं। मेरी जो आपसे असमहति है वो इसलिए बनी रहेगी क्योंकि एक हिंदू होने के नाते जरुरी नहीं कि मैं आपकी कही हर बात से सहमत हूं। इस नाते मेंरा विरोध हर समय रहेगा। पहले मैं आपकी दूसरी पोस्ट पर उतर देने वाला था, जिसमें आपने मेरा कोई विरोध नहीं किया था। पर ये पूरी पोस्ट मेरे नाम करते हुए आपने बात को व्यक्तिगत कर दी है। आपके बेहूदा आरोपों का पहली और आखिर बार यहां जवाब दे रहा हूं। क्योंकि इन बातों के बहाने आपने मीडिया को घसीटने की कोशिश की है..साथ ही मैं मेरे पत्रकार के घर में पैदा होने पर व्यंग्य करने का प्रयास किया है। दूसरे आपने एक कट्टर भारतीय को अपनी तरह सांप्रदायिक कहने की कोशिश की है। देशभक्त्ती की आपकी बातों पर क्या कहूं। अगर आपने लालबहादूर शास्त्री को बेहतरीन तरीके से पढ़ा होता तो जानते की कश्मीर में जाना ही देशभक्ति नहीं है। मैने कभी मुसलमानों का विरोध नहीं किया है। आपकी समस्या ये है कि आप हर बात को धर्म में ला घुसड़ाने का प्रयास करते हैं। आप अगर रामपुर के शम्स नावेद उस्मानी साहब की बातों का मर्म समझते तो मुझपर इतना घटिया आरोप नहीं लगाते।। जिस किताब का आप आज जिक्र करते हैं उन किताबों को मैं महज 14 साल की उम्र मे पढ़ चुका था। जिन मेरे पिता के पत्रकार होने पर आप घिनौना व्यंग्य करने की कोशिश कर रहे हैं तो जान लीजिए उनकी तारीफ खुद उस्मानी साहब ने हमारे घर आकर की थी। कहा था कि वो धन्य हैं ऐसे सच्चे इंसान के यहां आकर। मैं भूला नहीं हूं। रही मेरे पर आपके आरोप की ...तो.तो आप तो मुझे समझे ही नहीं। मुसलमान का विरोध मैने कभी नहीं किया। मैं तो हर किसी को हिंदू ही मानता हूं चाहे आप ही क्यों न हो। पर आप लगता है कि चीजों पर आपका बस नहीं चलता तो धर्म के बहाने, धर्म को बीच में लाकर लोगो को भड़काने का काम करने की कोशिश करते है। मैं आपका बिल्कुल विरोध नहीं करता हूं .विरोध आपकी हिंदू आस्थाओं पर चोट करने की कोशिश का करता हूं। पर आप समझेंगे नहीं। वैसे भी मुझे आपसे सटिर्फिकेट लेने की जरुरत भी नही है कि मैं भारतीय हूं या नहीं, हां मुझे गर्व है कि मैं हिंदू हैं...पर मुझे मुसलिम विरोधी कहकर मीडिया को समझने की भूल न करें। आप उन लोगो में से हैं जो मीडिया मैं आई सकारात्मक खबरों पर ध्यान नहीं देता मै ऐसे लोगो पर कुछ कहना भी छोड़ चुका हूं। हर जगह नकारात्मक चीजों को ही देखना लगता है आपका स्वभाव बनता जा रहा है। मेरे हिसाब से आप हिंदू विरोधी नहीं हैं..पर आप अक्सर हिंदु आस्थाओं पर चोट करते रहते हैं। और उस पर तुर्रा ये कि आप सोचें की कोई आपका विरोध न करे औऱ आपकी बात मान ले ...तो ये आपकी ज्यादती होगी..और कोई विरोध करे तो आप उसे मुसलमान विरोधी कहने से बाज नहीं आते। आपको तो शर्म आनी चाहिए जो एक विरोध के स्वर को पचा नहीं पाता औऱ बातचीत को एक व्यक्गित पोस्ट बना देता है। मैने किसी मुसलमान को गद्दार नहीं कहा न ही कहूंगा। गद्दार की परिभाषआ एक ही होती है उसका कोई धर्म नहीं। आपको ये तक पता नहीं की महान विदूषी गार्गी का समय काल और आदि गुरु शंकराचार्य कं समय काल में कितना अंतर था। आपने उनमें शास्त्रार्थ करा दिया। पर चलिए ये आपका किसी किताब में पढ़ना मान सकता था। वैसे भी मैने कहीं नहीं कहा कि मैं पेशेगत पत्रकार हूं। फिर भी हां मुझ गर्व है कि मै एक पत्रकार के घर पैदा हुआ औऱ उसकी गहराईयों से वाकिफ हूं। एक सच्चा पत्रकार और देशभक्त में कोई अंतर नहीं होता। मेरी हर पोस्ट समाज से होने वाले व्यक्तिगत अनुभव पर अधारित होते हैं उमसें उसका पत्रकारिता के पेशे से कोई लेना देना नहीं है। पर आपको मेरी बातें समझ नहीं आएं। आप तो ऐलान करते नजर आते हैं किसी राजनीतिज्ञ की तरह की फलां व्यक्ति मुसलिम विरोधी है फलां नहीं। आपकी सोच का विरोध हुआ टिप्पणी हुई तो तो इतनी लंबी पोस्ट मार डाली। कभी सोचा है कि अपने ही भाईयों की आस्था पर चोट मारते हैं तो कितना दुख होता हैं। पर उस वक्त आप अपने धर्म औऱ महान पैंगबर की आड़ लेकर अपने को निर्दोष बच्चा सा साबित करने लगते हैं। पर जरा उसी रहुनमा कि इस बात को भी अमल में लाते और जो भारतीय सभ्यता पांच हजार साल से सीखा रही है कि मन, कर्म और वचन से भी किसी को दुख देना घोर पाप है। पर आप समझे तब न। रही बात मेनका और गार्गी की तुलना तो इ दोनो के निहितार्थ आपकी समझ से परे हैं और न ही मैं समझाउंगा। क्योंकी इतनी किताबें पढ़कर भी आप समझ नहीं पाए तो क्या समझेंगे।

Rohit Singh said...

जमाल साहब आफकी दोनो पोस्ट पढी। मगर ममझ नहीं आता कि हूंसी या अपने ही हमवतन की ऐसी बातों पर शोक करुं। आपms ऐसी बचकानी पोस्ट की उम्मीद नहीं थी। किसी भी चीज को घूमा कर व्यक्तिगत बननाने में माहिर होते जा रहे हैं। मेरी जो आपसे असमहति है वो इसलिए बनी रहेगी क्योंकि एक हिंदू होने के नाते जरुरी नहीं कि मैं आपकी कही हर बात से सहमत हूं। इस नाते मेंरा विरोध हर समय रहेगा। पहले मैं आपकी दूसरी पोस्ट पर उतर देने वाला था, जिसमें आपने मेरा कोई विरोध नहीं किया था। पर ये पूरी पोस्ट मेरे नाम करते हुए आपने बात को व्यक्तिगत कर दी है। आपके बेहूदा आरोपों का पहली और आखिर बार यहां जवाब दे रहा हूं। क्योंकि इन बातों के बहाने आपने मीडिया को घसीटने की कोशिश की है..साथ ही मैं मेरे पत्रकार के घर में पैदा होने पर व्यंग्य करने का प्रयास किया है। दूसरे आपने एक कट्टर भारतीय को अपनी तरह सांप्रदायिक कहने की कोशिश की है। देशभक्त्ती की आपकी बातों पर क्या कहूं। अगर आपने लालबहादूर शास्त्री को बेहतरीन तरीके से पढ़ा होता तो जानते की कश्मीर में जाना ही देशभक्ति नहीं है। मैने कभी मुसलमानों का विरोध नहीं किया है। आपकी समस्या ये है कि आप हर बात को धर्म में ला घुसड़ाने का प्रयास करते हैं। आप अगर रामपुर के शम्स नावेद उस्मानी साहब की बातों का मर्म समझते तो मुझपर इतना घटिया आरोप नहीं लगाते।। जिस किताब का आप आज जिक्र करते हैं उन किताबों को मैं महज 14 साल की उम्र मे पढ़ चुका था। जिन मेरे पिता के पत्रकार होने पर आप घिनौना व्यंग्य करने की कोशिश कर रहे हैं तो जान लीजिए उनकी तारीफ खुद उस्मानी साहब ने हमारे घर आकर की थी। कहा था कि वो धन्य हैं ऐसे सच्चे इंसान के यहां आकर। मैं भूला नहीं हूं। रही मेरे पर आपके आरोप की ...तो.तो आप तो मुझे समझे ही नहीं। मुसलमान का विरोध मैने कभी नहीं किया। मैं तो हर किसी को हिंदू ही मानता हूं चाहे आप ही क्यों न हो। पर आप लगता है कि चीजों पर आपका बस नहीं चलता तो धर्म के बहाने, धर्म को बीच में लाकर लोगो को भड़काने का काम करने की कोशिश करते है। मैं आपका बिल्कुल विरोध नहीं करता हूं .विरोध आपकी हिंदू आस्थाओं पर चोट करने की कोशिश का करता हूं। पर आप समझेंगे नहीं। वैसे भी मुझे आपसे सटिर्फिकेट लेने की जरुरत भी नही है कि मैं भारतीय हूं या नहीं, हां मुझे गर्व है कि मैं हिंदू हैं...पर मुझे मुसलिम विरोधी कहकर मीडिया को समझने की भूल न करें। आप उन लोगो में से हैं जो मीडिया मैं आई सकारात्मक खबरों पर ध्यान नहीं देता मै ऐसे लोगो पर कुछ कहना भी छोड़ चुका हूं। हर जगह नकारात्मक चीजों को ही देखना लगता है आपका स्वभाव बनता जा रहा है। मेरे हिसाब से आप हिंदू विरोधी नहीं हैं..पर आप अक्सर हिंदु आस्थाओं पर चोट करते रहते हैं। और उस पर तुर्रा ये कि आप सोचें की कोई आपका विरोध न करे औऱ आपकी बात मान ले ...तो ये आपकी ज्यादती होगी..और कोई विरोध करे तो आप उसे मुसलमान विरोधी कहने से बाज नहीं आते। आपको तो शर्म आनी चाहिए जो एक विरोध के स्वर को पचा नहीं पाता औऱ बातचीत को एक व्यक्गित पोस्ट बना देता है। मैने किसी मुसलमान को गद्दार नहीं कहा न ही कहूंगा। गद्दार की परिभाषआ एक ही होती है उसका कोई धर्म नहीं। आपको ये तक पता नहीं की महान विदूषी गार्गी का समय काल और आदि गुरु शंकराचार्य कं समय काल में कितना अंतर था। आपने उनमें शास्त्रार्थ करा दिया। पर चलिए ये आपका किसी किताब में पढ़ना मान सकता था। वैसे भी मैने कहीं नहीं कहा कि मैं पेशेगत पत्रकार हूं। फिर भी हां मुझ गर्व है कि मै एक पत्रकार के घर पैदा हुआ औऱ उसकी गहराईयों से वाकिफ हूं। एक सच्चा पत्रकार और देशभक्त में कोई अंतर नहीं होता। मेरी हर पोस्ट समाज से होने वाले व्यक्तिगत अनुभव पर अधारित होते हैं उमसें उसका पत्रकारिता के पेशे से कोई लेना देना नहीं है। पर आपको मेरी बातें समझ नहीं आएं। आप तो ऐलान करते नजर आते हैं किसी राजनीतिज्ञ की तरह की फलां व्यक्ति मुसलिम विरोधी है फलां नहीं। आपकी सोच का विरोध हुआ टिप्पणी हुई तो तो इतनी लंबी पोस्ट मार डाली। कभी सोचा है कि अपने ही भाईयों की आस्था पर चोट मारते हैं तो कितना दुख होता हैं। पर उस वक्त आप अपने धर्म औऱ महान पैंगबर की आड़ लेकर अपने को निर्दोष बच्चा सा साबित करने लगते हैं। पर जरा उसी रहुनमा कि इस बात को भी अमल में लाते और जो भारतीय सभ्यता पांच हजार साल से सीखा रही है कि मन, कर्म और वचन से भी किसी को दुख देना घोर पाप है। पर आप समझे तब न। रही बात मेनका और गार्गी की तुलना तो इ दोनो के निहितार्थ आपकी समझ से परे हैं और न ही मैं समझाउंगा। क्योंकी इतनी किताबें पढ़कर भी आप समझ नहीं पाए तो क्या समझेंगे।

Rohit Singh said...
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Rohit Singh said...

आप अगर रामपुर के शम्स नावेद उस्मानी साहब की बातों का मर्म समझते तो मुझपर इतना घटिया आरोप नहीं लगाते।। जिस किताब का आप आज जिक्र करते हैं उन किताबों को मैं महज 14 साल की उम्र मे पढ़ चुका था। जिन मेरे पिता के पत्रकार होने पर आप घिनौना व्यंग्य करने की कोशिश कर रहे हैं तो जान लीजिए उनकी तारीफ खुद उस्मानी साहब ने हमारे घर आकर की थी। कहा था कि वो धन्य हैं ऐसे सच्चे इंसान के यहां आकर। मैं भूला नहीं हूं।

Rohit Singh said...

रही मेरे पर आपके आरोप की ...तो.तो आप तो मुझे समझे ही नहीं। मुसलमान का विरोध मैने कभी नहीं किया। मैं तो हर किसी को हिंदू ही मानता हूं चाहे आप ही क्यों न हो। पर आप लगता है कि चीजों पर आपका बस नहीं चलता तो धर्म के बहाने, धर्म को बीच में लाकर लोगो को भड़काने का काम करने की कोशिश करते है। मैं आपका बिल्कुल विरोध नहीं करता हूं .विरोध आपकी हिंदू आस्थाओं पर चोट करने की कोशिश का करता हूं। पर आप समझेंगे नहीं। वैसे भी मुझे आपसे सटिर्फिकेट लेने की जरुरत भी नही है कि मैं भारतीय हूं या नहीं, हां मुझे गर्व है कि मैं हिंदू हैं...पर मुझे मुसलिम विरोधी कहकर मीडिया को समझने की भूल न करें। आप उन लोगो में से हैं जो मीडिया मैं आई सकारात्मक खबरों पर ध्यान नहीं देता मै ऐसे लोगो पर कुछ कहना भी छोड़ चुका हूं। हर जगह नकारात्मक चीजों को ही देखना लगता है आपका स्वभाव बनता जा रहा है। मेरे हिसाब से आप हिंदू विरोधी नहीं हैं..पर आप अक्सर हिंदु आस्थाओं पर चोट करते रहते हैं। और उस पर तुर्रा ये कि आप सोचें की कोई आपका विरोध न करे औऱ आपकी बात मान ले ...तो ये आपकी ज्यादती होगी..और कोई विरोध करे तो आप उसे मुसलमान विरोधी कहने से बाज नहीं आते। आपको तो शर्म आनी चाहिए जो एक विरोध के स्वर को पचा नहीं पाता औऱ बातचीत को एक व्यक्गित पोस्ट बना देता है। मैने किसी मुसलमान को गद्दार नहीं कहा न ही कहूंगा। गद्दार की परिभाषआ एक ही होती है उसका कोई धर्म नहीं। आपको ये तक पता नहीं की महान विदूषी गार्गी का समय काल और आदि गुरु शंकराचार्य कं समय काल में कितना अंतर था। आपने उनमें शास्त्रार्थ करा दिया। पर चलिए ये आपका किसी किताब में पढ़ना मान सकता था। वैसे भी मैने कहीं नहीं कहा कि मैं पेशेगत पत्रकार हूं। फिर भी हां मुझ गर्व है कि मै एक पत्रकार के घर पैदा हुआ औऱ उसकी गहराईयों से वाकिफ हूं। एक सच्चा पत्रकार और देशभक्त में कोई अंतर नहीं होता। मेरी हर पोस्ट समाज से होने वाले व्यक्तिगत अनुभव पर अधारित होते हैं उमसें उसका पत्रकारिता के पेशे से कोई लेना देना नहीं है। पर आपको मेरी बातें समझ नहीं आएं। आप तो ऐलान करते नजर आते हैं किसी राजनीतिज्ञ की तरह की फलां व्यक्ति मुसलिम विरोधी है फलां नहीं। आपकी सोच का विरोध हुआ टिप्पणी हुई तो तो इतनी लंबी पोस्ट मार डाली। कभी सोचा है कि अपने ही भाईयों की आस्था पर चोट मारते हैं तो कितना दुख होता हैं। पर उस वक्त आप अपने धर्म औऱ महान पैंगबर की आड़ लेकर अपने को निर्दोष बच्चा सा साबित करने लगते हैं। पर जरा उसी रहुनमा कि इस बात को भी अमल में लाते और जो भारतीय सभ्यता पांच हजार साल से सीखा रही है कि मन, कर्म और वचन से भी किसी को दुख देना घोर पाप है। पर आप समझे तब न। रही बात मेनका और गार्गी की तुलना तो इ दोनो के निहितार्थ आपकी समझ से परे हैं और न ही मैं समझाउंगा। क्योंकी इतनी किताबें पढ़कर भी आप समझ नहीं पाए तो क्या समझेंगे। रहा मेरे दिव्या जी के समर्थन या विरोध का तो अगर आप मेरे पोस्ट को पढ़ते तो आप जानते कि मुझसे वो भी नाराज थी। लेकिन आज तक मैने उस बात पर उनकी नारजगी को गलत माना है और मैं अपने उस विचार पर और पोस्ट पर कायम हूं, क्योंकि मेरी नजर में हर समय समाज का वो व्यक्ति होता है जिसके लिए गांधी जी कह गए हैं किसी काम को करने से पहले उसके बारे में सोचो कि तुम्हारे कुछ करने से उसका कुछ भला होगा की नहीं। अगर मैं उसके लिए कुछ कर नहीं पाता हूं तो कम से कम उसकी तकलीफ पर हूंसू तो नहीं और जहां हो सके उसको दुखी करने वाले तंत्र का विरोध करुं। मेरा पहला औऱ आखिर उद्देश्य भी यही है..मेरे बिंदास बोल का मतलब भी ये है कि बोलो तो...बिंदास । मेरी नजर में धर्म एक निजी आस्था औऱ उसपर चोट करने का हक किसी को नहीं है चाहे कोई भी हो। मगर आप मेरी एक ही पोस्ट पर मेरे ब्लॉग पर नमुरदार हुए हैं..वो भी उसमें, जिसमे मैने एक इंसान शहरोज जी का जिक्र किया था. पर आप उस पोस्ट के अलावा किसी पर नहीं नजर आए। आखिर क्यों। पर आपकी समझ में कुछ नहीं आने वाला। आफ तो यहां ये ठहराने वाले हाकिम बने नजर आते हैं कि कौन किसकी चापलूसी कर रहा है औऱ कौन मुसलमान विरोधी। आपसे कोई सहमत हो तो इसमें आप अपना इकबाल बुलंद समझते हैं औऱ बातें करने लगते हैं आलिम फाजिल की तरह ..,,,मगर कोई आप से कोई विरोध दर्ज करे तो आप उसे अपना नहीं..मुसलमानों का विरोधी ठहराने लगते हैं। कितनी ओछी सोच है आपकी।...हद है। मैं आपकी इसी सोच का जबरदस्त विरोध करता हूं। ऐसे संप्रदायिक होने के चक्कर मे आप आम इंसान की समझ में आने वाली अपनी ही सोच के विरोध मे चले जाते हैं। आप शब्द को पकड़ने की कला में माहिर होने की कोशिश में हैं न कि शब्दार्थ को समझने में। माफ कीजिएगा आपसे इतने नीचे गिरने की उम्मीद मैने नहीं की। खुदा हाफिज जय श्री राम। आखिरी सलाम आपको।