पश्चिम में यदि द्रुतगति से फैलने वाली आज की यदि कोई आस्था है तो वह है इस्लाम और इसीलिए उन्होंने इस चौंकाने वाली संभावना को रेखांकित किया है कि इस सदी के अंत तक यूरोप इस्लामी रंग को अपना सकता है, चाहे संगठित चर्च संप्रदायों के साथ-साथ उग्रवाद के संबंध में कितनी ही वैचारिक उठापठक की जाए। जनगणनाओं के विश्लेषणों, या जनसांख्यिकी दबाव भी यही सिद्ध करते हैं कि जिन पर तर्कों के जाल में यदि चाहें तो हम लोगों को भ्रमित करते रह सकते हैं। सहसा विश्वास नहीं होता है कि चर्च की यूरोप जैसी अभेद्य हृदयस्थली को, इस्लाम के विरूद्ध प्रचार के बावजूद, बर्नार्ड लिविस जैसे विश्वप्रसिद्ध विचारक भी मानते हैं, इस सदी के अंत तक, मुस्लिम आस्था नियंत्रित कर सकेगी। कभी-कभी ऐसा लगता है कि बर्नार्ड लिविस का यह प्रश्न उठाना आज के विकास क्रम के लिए श्रेयस्कर है क्योंकि इसके द्वारा विश्व राजनीति का मानचित्र फिर बदला सकता है। हाल में फ्रांसीसी समाचार एजेन्सी एएफपी और एसोसिएटेड प्रेस द्वारा प्रसारित ‘द फोरम आन रिलिजन एंड पब्लिक लाइफ’ के एक तीन वर्षीय अध्ययन से यह तथ्य उजागर हुआ है कि आज विश्वभर में हर चार में से एक व्यक्ति इस्लामी आस्था को मानता है। दुनिया की सबसे बड़ी मुस्लिम जनसंख्या वाले 90 देशों में भारत का स्थान आज तीसरा है। हमारे देश के ऊपर मात्र इण्डोनेशिया और पाकिस्तान ही हैं। चाहे बांग्लादेश हो या मिस्र, ईरान, तुर्की और अल्जीरिया या मोरक्को हो वहां मुसलमानों की संख्या भारत से कम है। हमारे देश में उनकी संख्या 16 करोड़ है। इसी अध्ययन में यह तथ्य भी उजागर हुआ है कि जर्मनी में लेबनान से अधिक मुस्लिम नागरिक हैं, चीन में इस्लाम धर्म में विश्वास करने वाले सीरिया से अधिक हैं और रूस, जार्डन और लीबिया की कुल मिलाकर मुस्लिम जनसंसख्या अधिक है। आज यह अवधारणा कि इसलाम धर्मावलंबी अरब मूल में है ध्वस्त हो चुकी है और यह पूरी तरह से एक वैश्विक समुदाय है। - हरिकृष्ण निगम
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