Wednesday, December 22, 2010

Snowfall in Srinagar श्रीनगर में बर्फ़बारी

श्रीनगर में बर्फ़बारी हो रही है। डल झील का पानी तक जम चुका है। यहां इतनी बर्फ़ पड़ती है लेकिन क्यों पड़ती है ?


बर्फ़ के दरम्यान अपने साथियों के साथ बादामी बाग़ में
भारत के नक्शे में कश्मीर को देखा जाए तो ऐसा लगता है कि जैसे गोया वह भारत का मस्तक हो। खोपड़ी में दिमाग़ होता है और दिमाग़ तभी सही फ़ैसला कर पाता है जबकि वह ठंडा हो। शायद ख़ुदा नेचर के ज़रिए इशारे की ज़ुबान में यही तालीम देना चाहता है। यहां केसर भी पैदा होता है और ज़ैतून भी। यहां सेब भी पैदा होता है और बादाम-अख़रोट भी। पानी की कुदरती दौलत भी यहां बेशुमार है। जिससे कि बिजली बनाई जाती है और देशभर को सप्लाई की जाती है। दिमाग़ शरीर से जुड़ा रहे तो ज़िंदगी बाक़ी रहती है और उससे अलग हो जाए तो मौत वाक़ै हो जाती है। कश्मीर के नेता कश्मीर को देश से अलग करना चाहते हैं। यह एक तरह की आत्महत्या है। कोई आदमी आत्महत्या करना चाहे तो देखने वाले उसे रोकते हैं, समझाते हैं। कश्मीरी नेताओं की अलगाववादी सोच को बदलने के लिए उन्हें देशभर के लोग एक लंबे अर्से से समझाते आ रहे हैं। अपने देश की अखंडता की रक्षा के लिए मैं भी अपने साथियों के साथ श्रीनगर पहुंचा और वहां पहुंचते ही हम सभी आतंकवादियों के निशाने पर आ गए। किसी भी पल जान जा सकती थी लेकिन भारतीय सैनिक और जेकेपी के सिपाही हमें हर दम घेरे हुए थे कि आपकी जान जाने से पहले अमन के दुश्मनों को हमसे मुक़ाबला करना पड़ेगा। नतीजा यह हुआ कि हमारी मुहिम सफल रही और हम जो करने गए थे उसे कामयाबी के साथ अंजाम दिया , लेकिन काम अभी जारी है।
कश्मीरी नेता कश्मीरी अवाम को गुमराह कर रहे हैं। मैं कश्मीरी अवाम को यह समझा रहा हूं और मेरी दलीलों की रौशनी में वे मेरी बात मानते भी हैं।
पीछे नज़र आ रही है शंकराचार्य हिल


बहरहाल ठंड पड़ रही है और मैं ख़ुदा से यही दुआ कर रहा हूं कि कश्मीरियों का दिमाग़ भी ठंडा हो और उनकी आंखें भी। ठंडे दिमाग़ से सोचें और अपनी ज़िंदगी की बेहतरी के लिए सोच समझकर सही फ़ैसला लें।


दो ख़ास बातें दो ख़ास लोगों से

(1)- क्यों Alpha male प्रिय प्रवीण जी ! पहचाना Gamma male को ?

(2)- मासूम साहब ! इस फ़ोटो में मेरे साथ Q. Naqvi भी मेरी बाईं जानिब खड़े हैं यानि कि एक ऐसी हस्ती, जिसे जाफ़री युवा ख़ूब पहचानते हैं।

9 comments:

S.M.Masoom said...

अनवर जमाल साहब इस तस्वीर के लिए शुक्रिया. वैसे मैं पहचान नहीं सका..

DR. ANWER JAMAL said...

@ जनाब मासूम साहब ! आप नहीं पहचान पाए । इसका मतलब यह है कि आप युवा नहीं रह गए हैं अब ।
... :) :) :)

S.M.Masoom said...

अब आप ही जवानी का कोई नुस्खा बताएं जैसे सतीश जी को बताया था..?

Ayaz ahmad said...

Wednesday, December 22, 2010Snowfall in Srinagar श्रीनगर में बर्फ़बारी
श्रीनगर में बर्फ़बारी हो रही है। डल झील का पानी तक जम चुका है। यहां इतनी बर्फ़ पड़ती है लेकिन क्यों पड़ती है ?



बर्फ़ के दरम्यान अपने साथियों के साथ बादामी बाग़ में
भारत के नक्शे में कश्मीर को देखा जाए तो ऐसा लगता है कि जैसे गोया वह भारत का मस्तक हो। खोपड़ी में दिमाग़ होता है और दिमाग़ तभी सही फ़ैसला कर पाता है जबकि वह ठंडा हो।

DR. ANWER JAMAL said...

@ जनाब मासूम साहब ! हम तो आपके पूछने से पहले ही बता चुके हैं तमाम अज्ज़ा ए नुस्ख़ा बराय शबाब । केसर , ज़ैतून , सेब , अख़रोट , बादाम और डल झील का शिकारा मय बेगम ।
जो आदमी इतनी चीज़ें रोज़ाना कूट पीस न सके वह सिर्फ़ जवारिश जालीनूस और हब्बे जालीनूस (Hamdard) को यूज़ कर ले । आया हुआ बुढ़ापा ऐसे चला जाएगा जैसे मेरे ब्लाग से मौतरिज़ लौटता है ।
ये एक हक़ीक़त है कि जिसने कश्मीर नहीं देखा , उसने एक अद्भुत नहीं देखा और ठीक ऐसे ही जिसने जवारिश जालीनूस नहीं खाई उसने ख़ुद को एक बड़े ज़ायक़े और क़ूव्वत से महरूम रखा । आदमी अगर मेरी सुने उसे अपनी बीवी हर उम्र में मुमताज़ महल नज़र आएगी ।
आप Hamdard या Rex की वेबसाइट पर जाकर मज़ीद मालूमात हासिल कर सकते हैं । हालाँकि इसकी कोई जरूरत नहीं है । जो हमने कहा है सच ही कहा है।

Shah Nawaz said...

आपको ज़मीनी स्तर पर देश हित के लिए कार्य करते देखकर अच्छा लगा... ढेरों शुभकामनाएं!

प्रवीण said...

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डॉक्टर साहब,

क्या बात करते हो आप, Alpha से लेकर Zulu तक सारे 'मेल' आप ही हो... फौजी 'कोट पारका' में जम बहुत रहे हो, यह तो मानना होगा सबको... नजर न लगे, चश्म-ए-बद्-दूर... :)

कश्मीर जैसा मैंने समझा है, वहाँ समस्या यह हो गई है कि अलगाव-आतंक वाद एक कैरियर के तौर पर उभरा है... बहुत कम समय में पैसा, प्रतिष्ठा आदि आदि कमा लेते हैं यह अलगाववादी लड़ाके-लड़के... जब तक बंदूकें छीनी नहीं जायेंगी, समस्या बनी रहेगी...



...

DR. ANWER JAMAL said...

@ Alpha male ! I love you b'cos of your analysis about Kashmir problem .

'चश्मे बद दूर' कहकर आपने जिस अपनाईयत का परिचय दिया है उससे मुझे अच्छा लगा । इस अपनाईयत भरे कमेँट से मेरी आत्मा अपने सूक्ष्मतम कणमूल तक आनंदित हो गई और एक मुल्ला को आनंदित देखकर वह लॉबी ज़रूर कुढ़ रही होगी जो किसी को भी मुल्ला की सराहना करते देखना नहीं चाहती । :) :)

कश्मीर समस्या के बारे में आपने जो विश्लेषण किया है , वह बिल्कुल ठीक है । मैंने अपने अध्ययन में भी यही पाया है । इन्हीं कश्मीरी लड़कों को लड़ाकों में तब्दील करने के लिए सरहद पार करा दी जाती है और पार कौन कराता है ?
आप जानते हैं , मैं जानता हूं और पब्लिक न ही जाने तो बेहतर है ।
कश्मीरी नेता अवाम को गुमराह भी कर रहे हैं और उसके विश्वास का सौदा भी कर रहे हैं कभी सरहद पार वालों से और कभी केंद्र वालों से ।
श्रीनगर के अभिजात्य मुस्लिम तबक़े के कुछ लोग इमदाद के नाम पर विदेशों से दीनार व डॉलर हवाला के ज़रिए ले आते हैं और मदद में देने के बजाय अपनी कोठियां और होटल बनाकर ऐश करते हैँ । इन लोगों ने श्रीनगर में ज़मीन के दाम आसमान पर पहुंचा दिए हैं । यहां के आम आदमी की हालत झारखंड और छत्तीसगढ़ के गरीबों से भी ज़्यादा बुरी है ।
लेकिन मेरे पास प्लान है , जो इनके दिमाग़ से अलगाववाद के विचार को उसके मूल सहित नष्ट कर देगा। उस प्लान को फ़क़त मैं जानता हूं और मैं अपने सीमित साधनों के साथ बरसों से करता आ रहा हूं बिना किसी दिखावे के , बिना किसी तारीफ़ की ख़्वाहिश के ।
मिशन जारी ही रहेगा , इंशा अल्लाह ।
कश्मीर मेँ हमारे जवान जितने दबाव में और जितने कष्ट उठाकर हमारी रक्षा में क़दम क़दम पर खड़े हैं , उसे आम नागरिक कभी जान ही नहीं सकते । उन समस्याओं पर आज तक न तो कोई फ़िल्म बनी है और न ही कोई टी.वी. सीरियल ।
अपनी ड्यूटी में उठे हुए आपके हरेक क़दम के लिए मैं आपका और तमाम सैनिकों का दिल से आभारी हूं ।
धन्यवाद !

DR. ANWER JAMAL said...

एक अहसास
जैसे टी. वी. चैनल्स में हरेक की एक निश्चित फ़्रीक्वेंसी होती है और उस चैनल का आनंद उठाने के लिए उसे जानना ज़रूरी होता है और किस ख़ास दिशा से उसके सिग्नल्स को कैच किया जा सकता , उस ख़ास दिशा को भी जानना पड़ता है तभी हम अपने यंत्र को ठीक सैट
कर पाते हैं ।
ठीक ऐसे ही हरेक इलाके और हरेक ग्रुप की सोच के रुख का पता ठीक से लगाना जरूरी होता है । कश्मीरियों के दिमाग़ से अलगाववाद के विचार को उसके मूल सहित नष्ट करने के लिए भी ऐसा करना अनिवार्य है । उस रुख को मैं जानता हूं और मैं अपने सीमित साधनों के साथ बरसों से उसी खास रुख पर काम करता आ रहा हूं बिना किसी दिखावे के , बिना किसी तारीफ़ की ख़्वाहिश के ।
मिशन जारी ही रहेगा , इंशा अल्लाह ।

लेकिन इतना सब देखकर भी हिंदुत्व के कितने दावेदार आये मेरे विचार का समर्थन करने ?
जबकि यही लोग बेसिर पैर की कविता पर वाह वाह करते हुए मिल जाएंगे ।
क्या इन तथाकथित हिंदू ब्लागर्स की हरकतों से देशप्रेमी मुसलमानों का हौसला नहीं टूटेगा ?
क्या मुसलमानों में यह धारणा नहीं बनेगी कि मुसलमान चाहे इस देश के लिए अपनी जान ही क्यों न दे दे, चाहे वह अपनी बीवी को बेवा और बच्चों को यतीम ही क्यों न बना दे तब भी उसके प्रति वह आत्मीयता और विश्वास हरगिज़ जागने वाला नहीं है जो कि इस देश के सूदख़ोर और रिश्वतख़ोर हिंदुओं को सहज ही हासिल है ।
मुसलमानों के यकीन का खून करने में ख़ुद हिंदुत्व के संस्कारवान ठेकेदारों का कितना हाथ है , इस पर भी विचार किया जाना चाहिए ।
...और हाँ , संभालकर रखना अपनी टिप्पणियाँ । कहीं ये किसी मुसलमान के काम न आ जाएं ।
...लेकिन जान लो कि यह रास्ता घातक है ।