लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आज़ादी की क़ीमत अगर महज़ 5 रूपये अदा करनी पड़ रही है तो इसमें क्या बुरा है ?
कई राज्यों में चुनाव संपन्न हो चुके हैं। पक्ष-विपक्ष में नतीजे भी आ चुके हैं, लिहाज़ा अब तक पेट्रोल की जो क़ीमतें बढ़ने से जबरन रोक कर रखी गई थीं, उन्हें बढ़ा दिया गया और यूं पेट्रोल अब 5 रूपये महंगा हो गया है। इसके बाद सरकार डीज़ल और गैस की क़ीमतें भी बढ़ाएगी। इससे फ़ायदा यह होगा कि जनता को अलग-अलग विरोध प्रदर्शन की ज़हमत नहीं करनी पड़ेगी। जनता पहले ही पेट्रोल की क़ीमत में बढ़ोतरी को लेकर जगह-जगह प्रदर्शन कर रही है। उसी में दो-चार तख्तियों पर गैस और डीज़ल के बारे में भी लिख कर काम चल जाएगा।
हमारी सरकार अपने नागरिकों का कितना ख़याल रखती है ?
नागरिक क्या जानें कि सरकार जिस वक्त किसी भी चीज़ के दाम बढ़ा रही होती है तो उसी समय वह नागरिकों के कोण से भी उनकी चिंता को समझ रही होती है। अभी आप कुछ दिन बाद देखेंगे कि जब जनता आपे से बाहर हो रही होगी और विपक्षी दल जनता के आक्रोश को अपने हक़ में भुनाने के लिए गले फाड़ रहे होंगे, तभी सरकार अचानक पेट्रोल का दाम 2 रूपये घटा देगी। गैस और डीज़ल के साथ भी वह यही करेगी।
विरोध प्रदर्शन करने वालों को भी लगेगा कि उनका विरोध प्रदर्शन करना रंग लाया, उन्होंने सरकार को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया और विपक्षी नेता भी जनता को बताएंगे कि देखा, हमने आपके लिए केंद्र सरकार से पंगा ले लिया, बच्चू अबकी बार ऐसी निकम्मी पार्टी को वोट मत देना बल्कि हमें देना।
हालांकि महंगाई वे ख़ुद भी बढ़ाते आए हैं।
ख़ैर, यह कहानी हम बचपन में ही समझ गए थे, जब हमने राजेश खन्ना की फ़िल्म ‘आज का एमएलए रामअवतार‘ देखी थी।
एक्चुअली, पेट्रोल को महंगा तो होना था डेढ़ रूपया लेकिन उसमें पार्टी फंड और दीगर कमीशन भी जुड़ गए तो उसे 3 रूपया महंगा करना मजबूरी बन गया और अगर महज़ 3 रूपये ही महंगा कर दिया जाता तो फिर जनता के ग़ुस्से को शांत करने के लिए जनप्रतिनिधि क्या अपना कमीशन छोड़ते ?
लिहाज़ा 2 रूपये और बढ़ाना पड़ गया। इस तरह क़ीमत में 5 रूपये का इज़ाफ़ा करना पड़ा। जब जनता का ग़ुस्सा पीक पर पहुंचेगा तो 2 रूपये कम कर दिए जाएंगे और सारा ढर्रा फिर से रूटीन पर आ जाएगा।
जनता की मुसीबत यह है कि अगर विरोध प्रदर्शन न करे तो फिर रेट 5 रूपये पर ही फ़िक्स हो जाएगा।
...और यह जनता भी कमाल है। जनता का जो भी सदस्य जहां बैठा हुआ जो भी चीज़ बेच रहा होगा, उसमें वह भी सरकारी स्टाइल में जायज़ के साथ फ़ालतू के दाम भी बढ़ा देगा। सरकार तो 2 रूपये कम भी कर देगी लेकिन ये जनता कभी कम नहीं करेगी और न ही इसके खि़लाफ़ कोई विरोध प्रदर्शन ही किया जा सकता है।
नेता को लुटेरा बताने वाली जनता ख़ुद लुटेरी है।
लुटेरी जनता से देश को कौन बचाएगा ?
5 comments:
विचारणीय लेख ....
सार्थक चिंतन.......
सरकार जनता को लूटने पर तुली है , जनता जनता को लूटने से गुरेज़ नहीं करती | सरकारें जनता को भलीभांति जानती-पहचानती हैं | कब और किस तरह , कहाँ और कैसे हलाल करना है ,उन्हें पता है | जनता तो भेड़ है , जहाँ भी जायेगी , मूँड़ी ही जायेगी |
"जनता तो भेड़ है, जहाँ भी जायेगी, मूँड़ी ही जायेगी."
सुरेंद्र सिंह झंझट जी की टिप्पणी में सब कुछ आ गया है.
जनता भेड़ की तरह भोली. नेताओं के चेहरे चुनावों में कैसे और चुनावों के बाद कैसे. बहुत ही भोले-भाले - भेड़िए की तरह.
@ सुरेंद्र जी !
@ भूषण जी !
एक रूख़ से यह बात सही है कि जनता भेड़ की तरह मूंडी जाती है जहां भी वह जाती है लेकिन दूसरा रूख़ यह है कि जो लोग जनता को मूंडते हैं उन्हें जनता ने ख़ुद चुना होता है। अगर वे लोग ग़लत हैं तो उन्हें चुनने वालों की ग़लती है कि जनता हमेशा से ग़लत लोगों को ही क्यों चुनती आ रही है ?
देखिए यह लेख -
देश में फैल रहे भ्रष्टाचार की ज़िम्मेदार जनता - Sharif खान
http://haqnama.blogspot.com/2011/05/sharif-khan.html
जनता का कैरेक्टर क्या है ?
जनता की अक्सरियत ख़ुद बदमाश है।
आप स्टेशन पर जनता के अंग किसी एक वेंडर से चाय लीजिए। वह आपको ऐसी चाय पिलाएगा कि उसे पीकर आप तुरंत ही चाय पीने से तौबा कर लेंगे। आप बाहर निकलिएगा तो ऑटो वाला आपसे नाजायज़ किराया मांगेगा। वह भी जनता का ही अंग है। आप रेस्टोरेंट या ढाबे पर जाएंगे तो वह आपको कितनी भी पुरानी सब्ज़ी परोस सकता है। आप पूजा के लिए केसर ख़रीदिए तो उसमें केसर के बजाय भुट्टे के बाल रंगे हुए निकलेंगे। आप पूजा का नारियल ख़रीदिए तो उसमें गिरी ही नहीं निकलेगी। आप अंदर मंदिर में जाएंगे तो वहां आपको पता चलेगा कि ‘ये स्थल निःसंदेह देव रहित हैं '।‘ (लिंक पर जाएं)
http://satish-saxena.blogspot.com/2010/12/blog-post_04.html
जगह-जगह घूमते हुए साधुओं को देखिएगा और उन्हें जानिएगा तो आपको पता चलेगा कि असली साधु तो कम हैं और नक़ली ज़्यादा हैं और उनमें बहुत से तो ऐसे हैं जो कि वांछित अपराधी हैं और इस रूप में फ़रारी काट रहे हैं।
ऐसे ही कुछ लोगों को तो जनता ईश्वर तक मान बैठती है। उन्हें मौत भी आती है और उनके पास से जनता का लूटा हुआ अकूत धन भी मिलता है लेकिन जनता उन्हें फिर भी ईश्वर ही मानती है।
...तो ऐसी है इस देश की जनता। धोखाधड़ी और झूठ आम है यहां। यही जनता दहेज लेती-देती है, जिससे पता चलता है कि इसमें हवस कूट-कूट कर भरी हुई है और इसे सामाजिक सरोकार से कोई लेना-देना नहीं है। यही जनता कन्या भ्रूण को पेट में मार डालती है। खरबों रूपये की शराब यही जनता पीती है। यही जनता राष्ट्रीय संपत्ति में आग लगाती है। यही जनता भड़काऊ लोगों को अपना नेता बनाती है। यही जनता अच्छे प्रतिनिधियों को मात्र इसलिए हरा देती है क्योंकि वह उनकी जाति, संप्रदाय और कल्चर वाला नहीं होता।
जनता ख़ुद ग़लत है और ग़लत लोगों को ही वह चुनती है। ग़लती का अंजाम सही होता ही नहीं और जनता यही चाहती है कि उसके ग़लत रहते हुए भी उसका कल्याण हो जाए, यह संभव नहीं है।
शुक्र है कि हमारे समाज में नेक लोग आज भी मौजूद हैं। उन्हीं के दम से सही और ग़लत की तमीज़ आज भी बाक़ी है लेकिन वे अल्पसंख्यक हैं।
आपने मेरे लेख पर टिप्पणी की , इसके लिए आपका शुक्रिया !
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जनता ख़ुद ग़लत है और ग़लत लोगों को ही वह चुनती है Self Improovement
आपने सही तो कहा है-
'यथा प्रजा तथा राजा' :))
यही लोकतंत्र की कहानी है.
@ भूषण जी ! आपकी सहमति के लिए शुक्रिया !
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