सलीम ख़ान साहब हमें दोपहर के खाने के लिए ‘टुंडे कबाबी‘ रेस्टोरेन्ट पर ले गए। यह वाक़या 8 मई 2011 का है। हम दोनों बाइक पर थे। उनके एक और मेहमान जनाब इफ़्तिख़ार साहब भी अपनी बाइक पर हमारे साथ थे। हम कुल पांच आदमी थे। रेस्टोरेन्ट अपने पूरे शबाब पर था। उसकी दोनों मंज़िलें खचाखच भरी हुई थीं। कोई सीट ख़ाली नहीं थी। कुछ देर के बाद बेसमेंट में सीटें नसीब हुईं तो हमें अपने खाने के लायक़ कुछ भी नज़र न आया।
हमें सलीम साहब से कहा कि हमें ऐसी जगह ले जाइयेगा, जहां रोटी के साथ दाल रायता मिलता हो, हम क़ोरमे और कबाब के मतलब के आदमी नहीं है भाई।
वहां जाकर हमें पूरे मेन्यु कोई भी चीज़ ऐसी नहीं मिली, जिसे मैं खा सकता। अब हालत यह हो गई कि एक अपने लिए वहां से उठना भी हमें अच्छा नहीं लगा। हमने दही मंगाई तो वहां दही तक भी न थी। कुछ पानी मिली सी चीज़ को उन्होंने रायता बताया, उसी से हमने खाकर प्रभु का गुण गाया।
Tundey Kababi , Lucknow |
Anwer Jamal with Saleem Khan |
No comments:
Post a Comment