सी रहे हैं 'कछुआ कफ़न' कानपुर में और नाम रखा है सूर्यभान.
http://reader-chandra.blogspot.com/2011/05/blog-post_03.htmlआदमी मुखौटा लगाकर समझता है कि अब उसे कोई नहीं पहचान पायेगा लेकिन बड़ा ब्लॉगर पहचान लेता है अपनी भेड़ों को उनके लहजे से .
हा हा हाइन जैसों के लिए दो एक लाइनें ही काफी हैं.
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