Thursday, May 19, 2011

अगर किसी को कोई तकलीफ़ है तो पहले उसकी तकलीफ़ दूर कर दीजिए, उसके बाद नमाज़ अदा कर लीजिए. Salat ul Juma


राजेंद्र सिंघल नहीं रहे। वे 40 वर्ष के थे। एक सड़क दुघर्टना में वे बस की चपेट में आ गए। संयोग से मैं उस समय हाई वे की एक मस्जिद में जुमा की नमाज़ पढ़ने के लिए अपने मक़ाम से निकला था। यह मस्जिद मेरे मक़ाम से बहुत दूर स्थित है। यह वाक़या कुछ सप्ताह पहले का है।
मस्जिद पहुंचा तो उसके पास बहुत भीड़ लगी हुई थी। हमारी उ. प्र. पुलिस के दरोग़ा और जवान पूरी मुस्तैदी से भीड़ को कवर कर रहे थे लेकिन तब तक किसी ने भी राजेंद्र जी की बॉडी छूकर यह देखने की ज़हमत गवारा न की थी कि कहीं उनमें जान बाक़ी तो नहीं है। सबने सरसरी सी नज़र डालकर ही उन्हें मरा मान लिया था। सारा पुलिस स्टाफ़ मुझे जानता-पहचानता है। सो मैं राजेंद्र जी के पास गया और उनका शरीर छूकर देखा। हादसा ताज़ा होने की वजह से उनका शरीर अभी भी गर्म था। मैंने उनकी नब्ज़ ख़ूब टटोली कि शायद मिल जाए। वह मुझे न मिली तो मैंने वहीं खड़े अपने एक और डाक्टर मित्र से कहा कि ज़रा आप भी देख लें। उन्होंने भी नब्ज़ देखकर उन्हें मृत घोषित कर दिया।
U. P. Police
Investigation
Dead Body, Mr. Rajendra Singhal
At Roadside
At the sheet
Mosque at Highway
----------------------------------------------------------------------------------------------------------
पुलिस स्टाफ़ ने मृतक का नाम श्री राजेंद्र सिंघल बताया और बताया कि वह सिकंद्राबाद ज़िला बुलंदशहर के निवासी हैं। अगले दिन पता चला कि वे दूध के कारोबारी हैं और उनके दो बच्चे हैं।
वे जिस विक्की पर सवार थे। वह एक रोडवेज़ बस की चपेट में आ गई थी और जब वे गिरे तो उनके पेट पर बस का पहिया चढ़ गया था। उनके दोनों कूल्हों की खाल फट गई थी और अंदर की चर्बी साफ़ नज़र आ रही थी। लाश की हालत बहुत ख़राब थी। रोडवेज़ बस उनकी विक्की को लगभग एक-दो किलोमीटर घसीटती हुई ले गई थी। ड्राइवर को गांव के एक लड़के ने अपनी मोटर साइकिल से पीछा करके पकड़ लिया वर्ना वह भागने में कामयाब हो ही जाता। भागने की कोशिश में उसने हाई वे पर बने हुए थाने को भी क्रॉस कर लिया था लेकिन धर लिया गया।
एक तिपहिया टेम्पो आ गया तो एक चादर में मैंने राजेंद्र सिंघल जी की लाश रखी, उसे बंधवाया और कुछ गांव वालों की मदद से उसे टेम्पो में लदवाकर पोस्टमार्टम के लिए रवाना करवाया।
जुमा की नमाज़ का समय क़रीब आ चुका था। मैं मस्जिद में दाखि़ल हुआ और नमाज़ भी अदा की और उसके बाद मैंने अपने लिए और मुल्क और दुनिया में आबाद सारी इंसानियत की बेहतरी के लिए दुआ मांगी। दुआ में राजेंद्र सिंघल के परिजन और उनके छोटे बच्चे भी याद रहे।
राजेंद्र सिंघल जी हैल्मेट नहीं पहने हुए थे और बहुत सी बातें हैं जो इस पोस्ट के माध्यम से मैं कहना चाहता था। उनमें से एक ख़ास बात यह कि यातायात नियमों का पालन ज़रूर करें क्योंकि हादसा कभी आपको बताकर नहीं आएगा। कुछ और बातें आप ख़ुद इस पोस्ट से ग्रहण कर सकते हैं।
इस पूरे वाक़ये में मुझे नमाज़ अदा करने में कोई दिक्क़त पेश नहीं आई जैसा कि निदा फ़ाज़ली ने एक फ़िज़ूल सा ख़याल आम कर रखा है कि

घर से मस्जिद है बड़ी दूर, चलो ये कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए

अगर घर से मस्जिद दूर है तो क्या जाना नहीं चाहिए ?
अगर किसी को कोई तकलीफ़ है तो पहले उसकी तकलीफ़ दूर कर दीजिए, उसके बाद नमाज़ अदा कर लीजिए। 
इस्लाम और  क़ुरआन यही सिखाता है और नमाज़ ख़ुद भी यही सिखाती है।
निदा फ़ाज़ली जैसे नास्तिक न तो दीन को ख़ुद समझते हैं और न ही दूसरों को समझने और समझाने देते हैं।
मौत हरेक की निश्चित है और वह किसे कब आएगी ?
कोई नहीं जानता। मालिक के सामने कोई बहानेबाज़ी काम नहीं आएगी। आप और हम जो भी कर रहे हैं, उसमें कौन सा काम लोक-दिखावे के लिए या अपनी इमेज पॉलिश करने के लिए कर रहे हैं और कौन सा काम ख़ालिस मालिक के हुक्म से और उसी की रज़ा के लिए कर रहे हैं, समय-समय पर अपना जायज़ा लेते रहें।
मालिक हमेशा रहेगा और जो काम आप उसकी रज़ा के लिए करेंगे वह भी हमेशा रहेगा और उसका जो बदला वह मालिक आपको देगा। उससे आपकी आत्मा शांत रहेगी और यह शांति आपके साथ सदा बनी रहेगी।
मालिक के लिए बच्चों और बड़ों के काम आएं और यह काम केवल उस पालनहार की रज़ा के लिए करें। ऐसा हर नमाज़ से पहले करें और हर नमाज़ के बाद करें।
मैं तो इस्लाम की तालीम यही समझा हूं।
आप मेरी पोस्ट से क्या समझे ?

6 comments:

Ayaz ahmad said...

अच्छी पोस्ट

Man said...

do.jamal namskaar ,photo badee veebhts he hata le

DR. ANWER JAMAL said...

भाई मान जी ! एक्सीडेंट की तस्वीरें भयानक ही होती हैं। इसी वजह से कोई इन भाई को हाथ भी नहीं लगा रहा था। बिना तस्वीरों के लोगों के सामने दृश्य उपस्थित नहीं होता यही मजबूरी थी कि तस्वीरें लगानी पड़ीं।
आप बहुत दिन बाद आए ?
इतने दिन कहां रहे ?
सब ख़ैरियत तो है न ?

Dinesh pareek said...

बहुत ही सुन्दर लिखा है अपने इस मैं कमी निकलना मेरे बस की बात नहीं है क्यों की मैं तो खुद १ नया ब्लोगर हु
बहुत दिनों से मैं ब्लॉग पे आया हु और फिर इसका मुझे खामियाजा भी भुगतना पड़ा क्यों की जब मैं खुद किसी के ब्लॉग पे नहीं गया तो दुसरे बंधू क्यों आयें गे इस के लिए मैं आप सब भाइयो और बहनों से माफ़ी मागता हु मेरे नहीं आने की भी १ वजह ये रही थी की ३१ मार्च के कुछ काम में में व्यस्त होने की वजह से नहीं आ पाया
पर मैने अपने ब्लॉग पे बहुत सायरी पोस्ट पे पहले ही कर दी थी लेकिन आप भाइयो का सहयोग नहीं मिल पाने की वजह से मैं थोरा दुखी जरुर हुआ हु
धन्यवाद्
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
http://vangaydinesh.blogspot.com/

एस एम् मासूम said...

हम जो भी कर रहे हैं, उसमें कौन सा काम लोक-दिखावे के लिए या अपनी इमेज पॉलिश करने के लिए कर रहे हैं और कौन सा काम ख़ालिस मालिक के हुक्म से और उसी की रज़ा के लिए कर रहे हैं, समय-समय पर अपना जायज़ा लेते रहें।
.
बहुत सही कहा.

Neelam said...

Anwer ji hamesha ki tarah aapki ye post bhi behtreen hai.
ufffffffff ye tasveere mera dil hi nahi aatma tak ko jhajhor gayin..