भाई आज सुबह-सुबह हमें जनाब कुंवर कुसुमेश जी की एक उम्दा ग़ज़ल पढ़ने के लिए मिल गई। उसके पहले शेर में ही ख़ुदा का नाम था और पूरी ग़ज़ल में एक उम्दा पैग़ाम था। ग़ज़ल पढ़कर हमने लिखा-
हर शेर उम्दा है ऊपर नीचे
हम हो गए आज तेरे पीछे
अब आप भी पढ़िए उनकी ग़ज़ल और बताइये कि इसके सिवा हम और क्या कह सकते थे ?
तारों के पीछे
कुँवर कुसुमेश
छिपी है शै कोई तारों के पीछे,
ख़ुदा होगा चमत्कारों के पीछे.
मेरे महबूब तू गुम हो गया है,
सुकूने-दिल है दीदारों के पीछे,
सुना है डॉक्टर हड़ताल पर हैं,
खड़ी है मौत बीमारों के पीछे.
खबर सच्ची नहीं मिल पा रही है,
है कोई हाथ अखबारों के पीछे.
हमेशा प्यार से हिल मिल के रहना,
यही पैग़ाम त्योहारों के पीछे.
तेरे अपने 'कुँवर' दुश्मन हैं तो क्या,
चला चल तू इन्हीं यारों के पीछे.
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शै=चीज़, दीदार=दर्शन,
सुकूने-दिल=दिल का सुकून.
4 comments:
sukone dil mila hai bhala kahan jayenge ham bachke.kunvar ji kee umda shayri ki koi misal nahi.badhai.
बहुत ही खराब हो आप कुसुमेश जी, जो इतनी बेहतरीन गजल कहते हो। हाँ नहीं तो। हा हा।
बहुत सुन्दर बहुत प्यारी गजल।
सचमुच प्यारी गजल।
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मौलवी और पंडित घुमाते रहे...
सीधे सच्चे लोग सदा दिल में उतर जाते हैं।
vaah anvar bhaai kusumesh ji ne to gaagar me saagr bhrdiaa ..akhtar khan akela kota rajsthan
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