असीमा बहन अपने पापा सुरेश भट्ट के साथ प्रिय प्रवीण जी भी विचलित हैं और भाई ख़ुशदीप जी भी। प्रिय प्रवीण जी जब भी देश में फैला भ्रष्टाचार देखते हैं वह विचलित हो जाते हैं। एक फ़ौजी अनुशासनहीनता और भ्रष्टाचार से कभी समझौता नहीं कर सकता। उनके दिमाग़ की फॉरमेटिंग ही ऐसे की जाती है। लेकिन यह भी सोचने वाली बात है कि लोग ईमानदार बनना क्यों नहीं चाहते ? |
बात दरअस्ल यह है कि यहां ईमानदार को सिवाय बर्बादी और मुसीबतों के कुछ हाथ नहीं आता, यहां तक कि अगर वह करोड़पति होता है तो एक समय ऐसा आ जाता है कि वह अपने बच्चों तक को सहारा देने के लायक़ नहीं बचता और उसके संगी-साथी अपना मतलब निकलते ही फूट लेते हैं और जनता उन्हें भुला देती है।
असीमा के पिता जी के साथ यही किया गया। उनकी दर्दनाक दास्तान ने ही भाई खुशदीप जी को विचलित कर दिया है।
ख़ुशदीप जी के कहने पर हम वहां गए और हमने कहा कि
असीमा, मेरी बहन ! यह दुनिया ख़ुदग़र्ज़ और अहसान फ़रामोश है। इसके पूंजीपति भी ऐसे ही हैं और इसके ग़रीब भी ऐसे ही हैं। आपके पिता ने अपनी नैतिक चेतना के प्रभाव में आकर जो कुछ किया, वह अपनी जगह दुरूस्त है। किसी के मानने या उसे नकारने से उसके सही होने में कोई अंतर नहीं आएगा और न ही आपके पिता की महानता में कोई कमी-बेशी होगी। जो भी नेकी और सच्चाई की राह पर चला है, आर्थिक रूप से वह अपने साथियों से पिछड़ता ही गया और अंत में उसे वह जनता भी भुला देती है, जिसके लिए वह लड़ता है।
जलियां वाला बाग़ में गोलियां खाने वालों को इस देश के नेता और जनता भुला चुके हैं, आपके पिता के साथ भी यही किया जा रहा है और देशसेवा करने वालों के साथ हमेशा यही किया जाएगा। यह एक सच है।
आपके मन की पीड़ा को मैं समझ सकता हूं। जो लोग कंधों पर उठाए जाने के लायक़ हों, उन्हें यूं नज़रअंदाज़ करने का मतलब है कि आगे से कोई भी ऐसा बलिदान नहीं करेगा और अगर करेगा तो उसका अंजाम भी यही होगा। जितने पढ़े-लिखे लोग हैं, वे इस सच्चाई से वाक़िफ़ हैं, इसीलिए वे 90 प्रतिशत भ्रष्ट हो चुके हैं। नेकी का बदला दुनिया कभी किसी को दे ही नहीं पाई, बदला तो सिर्फ़ वह मालिक ही देता है जिसने बंदे को पैदा किया और उसे नेकी की प्रेरणा दी है। दुनिया की सामूहिक नैतिक चेतना मृत प्रायः है, केवल शरीर ज़िंदा हैं। सारी ज़मीन एक प्रेतलोक बन चुकी है। इन प्रेतों के पास शरीर भी है। लगभग सभी भटक रहे हैं। सत्य और न्याय से तो बहुत कम मतलब रह गया है। हरेक आदमी ऐश करना चाहता है और समृद्ध होना चाहता है।
जो भी नेकी सच्चे मालिक को भुलाकर की जाती है, वह हसरत और अफ़सोस के सिवा कुछ और नहीं दे पाती।
आपके आदरणीय पिता जी के द्वारा जो भी सत्य आप पर प्रकट हुआ है, उसे आप एक और महानतर सत्य को पाने का माध्यम बना लेंगी तो आपके मन की दुनिया में शिकायत और मायूसी के अंधेरों के बीच एक नई आशा का सूरज उगेगा। मुझे यह उजाला हासिल है, आपको भी मैं यही भेंट करता हूं।
आपके लिए और आपके आदरणीय पिता जी के लिए मैं पालनहार से विशेष प्रार्थना करूंगा।
धन्यवाद !
1. देखिए वह पोस्ट जो आपको बताएगी प्रिय प्रवीण जी की चिंता का कारण
“We are told that 80 per cent or 90 per cent of the judges are corrupt,”- Justice Katju2. देखिए वह पोस्ट जिसमें आपको नज़र आएगा भाई ख़ुशदीप जी के अफ़सोस का कारण
अब दुनिया के सामने एक सवाल हैं मेरे पापा-सुरेश भट्ट
और सबके बाद आप देखिए यह लिंक जिसमें आपको नज़र आएगा समस्या का निवारणसारी ज़मीन एक प्रेतलोक बन चुकी है Ghostland
सब पढ़िए और सोचिये वह उपाय जो हमें बेईमानी से मुक्ति दिलाये और देशसेवा करना भी सिखाये और देश सेवा करने वालों का सम्मान करना भी सिखाए.
2 comments:
प्रायः आर्थिक स्थिति से ही क़द का पैमाना रही है। इसलिए,कामनाओं को दुखों का कारण बताए जाने के बावजूद हमने उसपर अमल को कभी अपने जीवन का अंग नहीं बनाया। विडम्बना यह है कि जब तक हम धन की निस्सारता महसूस करें,जीवन का अधिकांश बीत चुका होता है।
@ कुमार राधारमण जी ! आपने बिलकुल ठीक कहा है , बात यही है कि जब तक हम सच को जान पाते हैं तब तक उम्र का एक बड़ा हिस्सा बीत चुका होता है. लेकिन असल सवाल यह है कि हमारे समाज पर हमेशा से होल्ड ज़ुल्म करने वाले सूदखोरों और ज़मींदारों का रहा है, हरेक राजा और हरेक बादशाह के ज़माने में यही तबक़ा सिरमौर रहा है और हरेक शहर में जनता आज भी इन्हें सम्मान देती है और जो लोग जनता की भलाई में अपना तन-मन-धन खपा देते हैं , जनता उन्हें भुला देती है. इसके बाद जनता फिर चाहती है कि कोई आये और उसके उद्धार के लिए अपनी जान दे .
सवाल यह है कि आख़िर कोई ऐसा क्यों करे ?
क्या कोई समझदार आदमी खुद को बर्बाद करने के लिए तैयार होगा ?
जबकि भ्रष्टाचार करके वह एक ऐश्वर्यशाली जीवन जी सकता है .
धन्यवाद .
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