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चंडीगढ़ [अनुराग अग्रवाल]। आलीशान कोठियों में काम करने वाली बाई हो या फिर रिक्शा चलाकर परिवार पालने वाले दिहाड़ीदार मजदूर, या किसी दुकान पर काम करने वाले कर्मचारी..सुबह-सवेरे अपने बच्चों को बस्ता उठाकर स्कूल जाते देखकर उनके दिल को वह तसल्ली जरूर मिलती होगी, जो उन्होंने कम आमदनी के चलते सपने में भी नहीं सोची होगी।
अभावों भरी जिंदगी जीने के आदी हो चुके इन लोगों के बच्चे भी अंग्रेजी माध्यम के नामी-गिरामी स्कूलों में पढ़ते हैं, कंप्यूटर चलाते हैं और फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते हैं। यह संभव हो पाया है संत अमरीक देव चावला के प्रयासों से। संत बनने तक के सफर में उन्होंने शिक्षा का अनोखा दान किया है।
अंतरिक्ष परी कल्पना चावला के चाचा अमरीक देव अपनी संपत्तिा, तीन स्कूल, एक वृद्धाश्रम और एक व्यावसायिक शिक्षा केंद्र निर्मल आश्रम ऋषिकेश को दान कर संत का जीवन जी रहे हैं। करनाल से जुड़े अमरीक देव चावला ऐसी शख्सियत हैं, जिन्होंने असहाय बच्चों को शिक्षित करने का बीड़ा तो उठाया ही, साथ ही दानवीर कर्ण की नगरी में लोगों को वास्तविक आजादी के मायने समझाए हैं। भगत लभ्भा मल करतार कौर चैरिटेबल ट्रस्ट के माध्यम से उन्होंने अनाथ, लाचार और जरूरतमंद बच्चों की शिक्षा के लिए संत निक्का सिंह के नाम पर तीन स्कूलों की स्थापना की थी।
संत निक्का सिंह पब्लिक स्कूल माडल टाउन में 12वीं तक, सदर बाजार में आठवीं और जरीफा फार्म में भी 12वीं तक के 3370 बच्चों को निशुल्क शिक्षा प्रदान की जा रही है। इन स्कूलों की खासियत यह है कि यहां सिर्फ गरीबों के बच्चे पढ़ते हैं, पर किसी से फीस अथवा दान राशि नहीं ली जाती। इन बच्चों को हर साल करीब चार लाख रुपये की किताबें और यूनिफार्म मुफ्त दी जाती है। आईटीआई से संबद्ध संत निक्का सिंह वोकेशनल इंस्टीट्यूट में 140 लड़कियों के लिए कंप्यूटर ट्रेनिंग, सिलाई-कढ़ाई, कटिंग-टेलरिंग और पैथोलाजी लैब के डिप्लोमा की व्यवस्था है।
यह व्यावसायिक कोर्स भी मुफ्त कराए जा रहे हैं। माडल टाउन में 140 कमरों वाले वृद्धाश्रम में इस समय 205 वृद्ध अपनी जिंदगी के सुखद पल जी रहे हैं। कल्पना चावला के पिता एवं अमरीक देव चावला के भाई बनारसी दास चावला स्वयं भी इसी वृद्धाश्रम में रह रहे हैं।
कभी सबसे अधिक आयकर देने वाले संत अमरीक देव ने 17 अक्टूबर 2008 को अपनी सारी संपत्ति, करीब सात एकड़ जमीन तथा करोड़ों रुपये की नगद धनराशि महंत राम सिंह की गद्दी वाले निर्मल आश्रम ऋषिकेश को प्रदान की और स्वयं प्रभु की भक्ति में लीन हो गए। निर्मल आश्रम को जो धनराशि दान की गई है, उसका मासिक ब्याज ही करीब नौ लाख रुपये आता है। ब्याज की इस राशि से बच्चों की समस्त पढ़ाई और यहां तक कि परीक्षा फीस का खर्चा भी चलता है।
संत अमरीक देव, उनके अनुयायी एचजी खुराना व सतीश गोयल का मानना है कि प्रभु के दिए जीवन को प्रभु के बच्चों का भविष्य संवारने में लगाने से बड़ा पुण्य का काम कोई दूसरा नहीं है।
1 comment:
अच्छा काम कोई भी करे वह अच्छा ही होता है. जिस काम का नतीजा अच्छा हो वह अच्छा काम होता है. शिक्षा और वह भी गरीबों को. यह काम तारीफ के काबिल है. एक वह लोग भी हैं जिनको देश का दुर्भाग्य कहा जाये तो अनुचित न होगा. और वह हैं मस्जिद की जगह मंदिर बना कर हमेशा के लिए नफरत के बीज बोने वाले.
संत अमरीक देव जी बधाई के पात्र हैं.
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