आज ज़ाकिर अली ‘रजनीश‘ के ब्लॉग पर एक पोस्ट देखी जिसमें वह नास्तिकों के किसी ब्लॉग ‘संवाद घर‘ की तारीफ़ कर रहे थे। संवाद घर के मालिक हैं संजय ग्रोवर। वह कहते हैं कि नास्तिकों के साथ ईश्वर में आस्था रखने वाले भी मर जाते हैं। इससे पता चलता है कि ईश्वर है ही नहीं।
बड़ी अजीब बात है कि जो चीज़ इंसान को ईश्वर की पहचान कराती है उसे ही ईश्वर के इन्कार का सामान बना लिया।
इंसान की मौत ही बताती है कि इस दुनिया में एक व्यवस्था काम कर रही है। मौत हरेक इंसान को आती है। इसी तरह इंसान की पैदाइश एक व्यवस्था का पता देती है। उसी व्यवस्था को जानने के बाद आज वैज्ञानिक कृत्रिम प्रजनन आदि में सफल हो पाए हैं। यह भी एक सर्वविदित तथ्य है कि व्यवस्था ख़ुद से कभी नहीं होती बल्कि उसे स्थापित करने वाला और उसे बनाए रखने वाला कोई होता ज़रूर है। प्रकृति की व्यवस्था को देखकर हम आसानी से जान सकते हैं कि यह सुव्यवस्थित सृष्टि किसी सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ हस्ती का काम है, इसी को ईश्वर, अल्लाह और गॉड कहते हैं। जो इसे मानता है और उसके विधान का पालन करता है उसे आस्तिक कहते हैं और जो इस सत्य का इन्कार करता है उसे नास्तिक कहते हैं। सत्य का इन्कार करने वाला कभी अपनी असल मंज़िल को पा नहीं सकता।
यह बात सभी नास्तिकों को जान लेनी चाहिए।
7 comments:
सहमत हूँ, आपके विचारों से!
kya fark padta hai kisi ke n manne se jab jo atal satya hai vah poorn hokar hi rahta hai to n manne vala n mane.
@ आदरणीय मयंक जी ! आपकी सहमति से मेरी बात का वज़न दो गुना हो गया है।
धन्यवाद !
@ शालिनी जी ! आपकी बात सही है। मैं आपका शुक्रगुज़ार हूं।
बात यह है कि ये नास्तिक लोग एक तो जानते नहीं हैं और ऊपर से मानते भी नहीं हैं। ये लोग ईश्वर और कर्मफल का इन्कार करके लोगों को ईश्वर के दण्ड से निडर बना देते हैं और बस इसी दुनिया की ऐश हासिल करने को जीवन का मक़सद बना लेते हैं। यही वजह है कि जिस भी हुकूमत की बुनियाद में नास्तिकता का दर्शन रहा है, वहां नैतिकता नाम की चीज़ ही बाक़ी न बची।
ब्लॉग जगत के जिस शख्स ने हमारीवाणी.कॉम का नामकरण किया था उससे पहले उसने ही हमारीअंजुमन.कॉम का भी नामकरण किया था.
Posted by सलीम ख़ान
स्कूल में पढऩे वाले एक मासूम बालक ने अपने पिता से पूछा, हमारे स्कूल टीचर पढ़ाई क्यों नहीं करते? पिता ने कहा, बेटा उन्हे सब आता है इसलिए। बेटे ने मासूमियत से पूछा तो फिर वो सारे सवाल हमसे क्यों पूछतीं हैं..?
ऐसे मासूम सवालों का कोई जबाव नहीं होता, लेकिन सवाल मासूम होते हैं और हम अक्सर यह प्रतीक्षा करते हैं कि जब वह बड़ा हो जाएगा तो अपने आप समझ जाएगा।
अनवर साहब, आपके मित्र श्री संजय ग्रोवर भी अभी मासूम हैं। उन्हें माफ कर दीजिए, जब वो बड़े हो जाएंगे तो अपने आप सब समझ जाएंगे।
इस प्रकृति को बनाने व चलाने वाली एक सत्ता तो है ही जिसे हम ईश्वर के नाम से सम्बोधित करते हैं फिर वह ईश्वर राम हो रहीम हो महावीर हो या किसी भी नाम से क्यों न पुकारा जा रहा हो किन्तु है तो ।
सत्य का इन्कार करने वाला कभी अपनी असल मंज़िल को पा नहीं सकता।...
सत्य है.........
meri sahmati bhi darj kar lijiye
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