Wednesday, May 25, 2011

ग़ददार निकला जौनपुर का सदाकांत IAS

उन पर जासूसी का इल्ज़ाम है । यह तीसरी मौका है जब किसी सीनियर ऑफिसर पर जासूसी का इल्ज़ाम लगा है । CBI काफी दिनों से उन पर नज़र रखे हुए थी। वह केंद्रीय गृह मंत्रालय में ज्याइंट सेक्रेटरी के पद पर थे और बॉर्डर मैनेजमेंट जैसे संवेदनशील मामले देखते थे।

7 comments:

Shalini kaushik said...

aise mahtvapoorn vibhag me rahte hue gaddar hona to vastav me nindniy hai.

arqam said...

मौत का खौफ उसे होता ही नहीं ;
जो बहुत हादसों से गुजरा है .


सुना रही थी वो दर्द अपना रोते-रोते
मगर दुनिया की नजर में वो एक मुजरा है .

S.M.Masoom said...

ग़द्दार का ना कोई मज़हब होता है, ना शहर. उसकी पहचान एक ग़द्दार के नाम से हुआ करती है. ग़ददार निकला आईएस
सदाकांत शायद अधिक सही होता अगर लिखा जाता तो?

DR. ANWER JAMAL said...

@ जनाब मासूम साहब ! जिन लोगों ने अपने लोगों के साथ धोखा किया और उन्हें क़त्ल किया और जब उन्हें मौत आयी तो उन्हें किसकी न किसी धार्मिक रस्म के तहत जलाया भी गया और दफनाया भी गया और उनमे से बहुत से लोगों के चित्र तो उनके धार्मिक स्थलों में भी लटके मिलेंगे और लोग उनपर गर्व भी करते हैं . भिंडरावाले का नाम उदाहरण के तौर पर लिया जा सकता है.
ऐसे में यह कहना सही नहीं लगता कि 'ग़द्दार का ना कोई मज़हब होता है, ना शहर. उसकी पहचान एक ग़द्दार के नाम से हुआ करती है. '

Arunesh c dave said...

इसमे कोई शक नही भारत के इतिहास ऐसे गद्दारो से भरे पड़े हैं जिनका मजहब केवल पैसा था और बाज लोग धार्मिक मुल्लाओ के बहकावे मे भी कर देते हैं गद्दर भगवा या हरे नही होते

एस एम् मासूम said...

@अनवर साहब आप ठहरे ज्ञानी ,आप जो कह दें वो सही. लेकिन मैंने बचपन से सुना था कि किसी बुरी इंसान कि बुराई से नफरत करो और उसकी बुराई से दूरी अख्तियार करो. ना तो उसके नाम से नफरत करो,ना उसके शहर के नाम से और ना ही उसके मज़हब या कबीले से नफरत करो यहाँ तक कि ऐसा भी कुछ ना करी कि बुरे काम करने वाले का मज़हब, शहर या उसका नाम ,बदनाम हो जाए.

DR. ANWER JAMAL said...

बंदा अभी ज़ेरे तरबियत है।
जनाब मासूम साहब ! यह ज्ञान भी आपके नाना हुज़ूर से ही वास्ता दर वास्ता मिला है और अल्लाह का बहुत बड़ा अहसान है कि मिला है। बस अब अमल भी इसके मुताबिक़ हो जाए तो बात बने वर्ना यही इल्म रोज़े क़ियामत मुझ पर हुज्जत बनेगा।
नेक आदमी अपने घर, शहर और क़ौम का नाम रौशन करता है और ग़ददारों की वजह से इन पर हमेशा कलंक का टीका लगता है। यह ख़ुद लगता है। न तो यह किसी के लगाने से लगता है और न ही यह किसी के मिटाने से मिटता है।
सरकार किसी को योग्य पाकर उस पर विश्वास करती है उसे ट्रेनिंग और सुविधाएं देती है ताकि वह क़ौम के लिए सरकारी मंशा के मुताबिक़ काम कर सके लेकिन आदमी लालच में पड़कर रास्ते से भटक जाता है और ज़िल्लत उठाता है।
इंसान जब भी निजी एजेंडे पर चलेगा, भटक जाएगा।
यही मिसाल ख़ुदा और बंदे के रिश्ते की भी है।
ख़ुदा ने इंसान को योग्यता दी और उसे सबसे सुंदर ग्रह पृथ्वी पर बसाया। उसने इंसान को ज्ञान दिया और भलाई को बुराई से अलग ज़ाहिर करके उसके लिए बुराई को हराम और भलाई को लाज़िम क़रार दिया लेकिन इंसान लालच में पड़कर रास्ते से हट गया और अपने ख़ुदा की मर्ज़ी के मुताबिक़ जीने के बजाय वह अपने निजी एजेंडे के मुताबिक़ जीने लगा। रास्ते से हटकर वह अपनी मंज़िल से दूर ही होता जा रहा है। ऐसे इंसान बहुत हैं। ऐसे सभी इंसान ख़ुदा के ग़ददार हैं। आज ज़मीन पर ग़ददार ही ग़ददार हैं और ख़ुदा के वफ़ादार बहुत ही कम हैं।
हम वफ़ादार बनें ख़ुदा के भी और अपने मुल्क के भी, इस्लाम यही सिखाता है। मुझे यही ज्ञान है और यही ज्ञान मैं बांटता हूं।
आपने मुझे ज्ञानी माना, आपका ऐसा मानना भी मेरे लिए बायसे मसर्रत है लेकिन बंदा अभी ज़ेरे तरबियत है।
वस्सलाम !

http://vedkuran.blogspot.com/2011/05/blog-post_25.html