जागरण जंक्शन में सबसे ज़्यादा देखे जाने वाली एक पोस्ट यह भी है। इसमें लेखक ने एक विशेष पहलू उजागर किया है।
महिलायें कहीं खुद सेक्स सिंबल के सहारे तो जमीनी लड़ाई लडऩे के मूड में नहीं है। कारण, महिलायें भी खुद देह का इस्तेमाल औजार, हथियार के तौर पर करते हुये अब इसे खुले बाजार में वाद का हिस्सा बना दिया है। मर्डर-2 के पांच पोस्टर सबके सब अश्लील, बाजार में उतारे गये हैं। लोगों से अपील की गयी है कि मादक पोस्टर को चुनने में निर्माता-निदेशक को मदद करें। ये फिल्में बच्चों के लिये नहीं हैं। इसकी हीरोइन श्रीलंका से आयात की गयी हैं। क्योंकि भारतीय हीराइनें तो कपड़ा उतारने से रहीं सो श्रीलंकाई सुंदरी जैकलीन फर्नांडीज को सेक्स बम के रूप में परोसा गया है जो भारत के इमरान हाशमी सेलिपटेंगी और यहां के मर्द उसकी मादकता को झेलकर किसी अनजान, सड़कों पर गुजर-बसर करने वाली लड़की को हवस का शिकार बनायेंगे। आज समय ने जरूर सोच को बदल दिया है। लड़कियां हर क्षेत्र में अगुआ बन रही हैं लेकिन भोग्या के रूप में उसके चरित्र में कहीं कोई बदलाव नजर नहीं आ रहा। वह आज भी दैहिक सुख की एक सुखद परिभाषा भर ही है। जमाना बदला है। सोच बदलने के बाद भी लड़कियां कहीं मर्डर-2 में कपड़े उतारती दिखती है तो कहीं ब्रिटनी सर्वश्रेष्ठ समलैगिंक आइकान चुनी जाती हैं। कारोबार चलाने की अचूक हथियार साबित हो रही हैं ऐसी लड़कियां। पान की दुकान पर बैठी महिला की एक मुस्कान को तरसते लोगों को देखकर तो यही लगता है। एक गांव है। वहां के पुल के बगल में एक पानवाली आजकल, इन दिनों, कुछ दिनों से दुकान चला रही हैं। उस दुकान में सिर्फ और सिर्फ कुछ है तो सिर्फ पान और वह पानवाली। कटघरे में वह दुकान एक जीर्ण मंदिर के कोख में है। वहां पहले रूकना क्या, कोई झांकना भी उचित नहीं समझता था। आज हर किसी की न सिर्फ वहां बैठकी होती है बल्कि जो गुजरता है पानवाली की एक झलक देखे बिना आगे नहीं बढ़ता। अगल-बगल के पानदुकानदारों के सामने एक खिल्ली भी बेचना मुश्किल। पता नहीं उस पानवाली की पान में क्या टेस्ट है कि हर शौकीन वहीं जुट रहे हैं, घंटों राजनीति की बाते वहीं उसी पानवाली की दुकान पर। घंटों बतियाते लोग कई बार पान खाते। बार-बार पानवाली को आंखों से टटोलते। देह विमर्श को निहारते और भारी मन से वहां से विदा होते हैं। शहरी संस्कृति में नित नये प्रयोग हो ही रहे हैं।
http://manoranjanthakur.jagranjunction.com/2011/06/12/%E0%A4%88%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8-%E0%A4%A1%E0%A5%8B%E0%A4%B2-%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%87/
जो बात लेखक ने पान वाली के बारे में अनुभव की है। उसी बात को बहुत से लोग कुछ विशेष महिला लेखिकाओं के बारे में कह चुके हैं। बेचारा पुरूष ब्लॉगर अच्छी और सार्थक पोस्ट को बैठा हुआ ख़ुद ही पढ़ता रहेगा और बार बार स्टैट्स चेक करके देखता रहेगा कि मेरे अलावा कितनों ने और पढ़ी है मेरी पोस्ट ?
जबकि दूसरी तरफ़ वैसे ही बस चुहल करने के लिए भी कोई लिख देगी तो उसे पढ़ने के लिए पुरूष ब्लॉगर्स की भीड़ लग जाएगी बिल्कुल ऐसे ही जैसे कि पान वाली की दुकान पर लग जाती है।
जब भी कोई आवाज़ हिंदी ब्लॉग जगत में लगाई गई कि सार्थक लिखो, मार्ग पर चलो और मार्ग दिखाओ तो यह आवाज़ सबसे ज़्यादा नागवार ब्लॉग जगत की इन पान वालियों को और इनके टिप्पणीकारों को ही लगी।
ऐसा क्यों है ?
इस पर विचार किया जाना आवश्यक है।
कहीं ऐसा न हो कि अब स्वर्ग में ब्लॉगिंग तो एक कल्पना ही रहे और हिंदी ब्लॉगिंग को ही ये लोग पाताल में उतार डालें।
17 comments:
विचारणीय एवं चिन्तनीय!
दशा हिन्दी ब्लोगिंग अकेले की नहीं, बहुतों की पाताल में जाने जैसी है...समाज का क्या होगा ये चिंता का विषय है.
हम नग्न से पोशाक वाले हुए बाद में आधुनिकता में अर्धनग्न हुए..अब नग्न होते जा रहे हैं.
इस पर जितना कहा जाए कम है...
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
@ आदरणीय शास्त्री जी ! हालत सचमुच चिंताजनक है ।
आभार !
@ डा. कुमारेन्द्र जी ! यह हक़िक़त है कि बहुत लोगों का शरीर तो धरती पर है लेकिन उनका आचार विचार पाताल में पड़ा है।
आपका शुक्रिया !
aapko jo kam karna hai vah kijiye kyonki kisi ke man me kya hai use koi nahi palat sakta haan aisa ho sakta hai ki samay dekh galat soch rakhne ala khud hi apni soch me parivartan lane ki koshish kare vaise ye kam bhi mushkil hai.isliye jo swayam ko sahi v achchha lage karna chahiye.
baat to sahi kahi hai...
purushon ke saath nainsaafi bhi ye purush pradhaan samaaj hi kar rha hai...
बात सही है
लेकिन
मुस्कुराए बिना रह नहीं सका
@ आदरणीय पाबला साहब ! मेरे ब्लॉग पर यह कमेंट आपका पहला कमेंट है। आपने कम शब्दों में जो कुछ कह दिया है। मुझे भी उस पर बेइख्तियार हंसी आ गई।
शुक्रिया !
अच्छा काम और टिप्पणी परस्पर निर्भर नहीं हैं। अधिकतर टिप्पणियों के स्तर से ही पता लग जाता है कि जो कविताओं-कहानियों में बहुत ऊंची उड़ान भरते हैं,उनके पास दूसरों को पढ़ने के लिए कितना वक्त होता है। यह सब जानने के बाद भी,संख्या को एग्रीगेटर क्यों भाव देते हैं,मैं नहीं समझ पाता हूं। फिर भी,मैं स्वीकार करना चाहूंगा कि कुछ महिला ब्लॉगरों ने बहुत अच्छा काम किया है। कुछ अन्य के पीछे भागने वाले वे हैं जिन्हें प्रतिदान चाहिए।
@ आदरणीय कुमार राधारमण जी ! यह हक़ीक़त है कि कुछ महिला ब्लॉगर्स ने बहुत अच्छा काम किया है। उनकी मेहनत को भी ब्लॉग जगत जानता है और उनके नाम को भी। प्रतिदान पाने के लिए जिनके पीछे भागने वाले भाग रहे हैं उन विशेष पाताल कन्याओं को भी ब्लॉग जगत जानता ही है। आपकी बात से सहमत हूं।
धन्यवाद !
.गीत : "इक्कीस कभी न होना है ",गीतकार :डॉ .नन्द लाल मेहता "वागीश "।
आओ सारे मिलकर देखें ,किस्मत किसकी सोहनी है ।
दिल्ली के दंगल में अब तो ,कुश्ती अंतिम होनी हैं ।।
राजनीति की इस चौसर पर ,जैसे गोट -वोट ज़रूरी है ,
ऐसे काले धन की खातिर ,भ्रष्ट व्यवस्था बहुत ज़रूरी ।
साथ -साथ दोनों हैं चलते ,नहीं कहीं कोई तकरार ,
गठबंधन की आड़ में यारों ,कैसी अजब गज़ब सरकार ,
मंत्री मुख पर पड़ीं नकाबें ,शक्लें सब मनमोहनी हैं ।
दिल्ली के दंगल में अब तो कुश्ती अंतिम होनी है ।।
मंद बुद्धि के पाले में ,फिर तर्क जुटाते कई उकील ,
चम्पू कई हैं ,जुगत भिड़ाते ,गढ़ते रंगीली तस्वीर ।
कहते हैं अब उम्र यही है ,भारत की बदले तकदीर ,
निकल गई गर हाथ से बाज़ी ,पड़ेगी दिल्ली खोनी है ,
उन्नीस की गिनती है उन्नीस ,इक्कीस कभी न होनी है ।
दिल्ली के दंगल में अब तो कुश्ती अंतिम होनी है ।।
लाख भोपाली जादू टोने अफवाहें ,छल छदम घिनौने ,
काम नहीं कर पायेंगें ये ,अश्रु जल से चरण भिगोने ।
अपनी रोनी सूरत से तुम ,बदसूरत चैनल को करते ,
दोहराते हो झूठ बराबर ,शर्मसार भारत को करते ,
अब तो आईना सच का देखो ,सिर पर बैठी होनी है ,
दिल्ली के दंगल में अब तो कुश्ती अंतिम होनी है ।
आओ सारे मिलकर देखें किस्मत किसकी सोहनी है ।
उन्नीस की गिनती है उन्नीस इक्कीस कभी न होनी है ।
विशेष :इक्कीस जून सोनिया जी का जन्म दिन हैं मुबारक उन्हें .उनके भोपाली चिरकुटों को ।
प्रस्तुति एवं सहभावी :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )
डॉ .साहब सवाल आपके टालू नहीं है .ये "गीत "आपको भड़काने के लिए ही पोस्ट किया है आप इधर कभी तशरीफ़ नहीं लाये ।अब ताव खाके आयेंगें .सारे दिन करते क्या रहतें हैं आप ?
मेरे एक मित्र थे (अब स्वर्गीय )बाबू लाल शर्मा ,पूर्व सम्पादक दैनिक भाष्कर (चंडीगढ़ ,पानीपत संकरण ).कहते थे अखबार के मुख पृष्ठ पर फोटो लाशों का नहीं खुशनुमा चेहरों का दिखाया जाता है .आपने जो बात कही वह कुछ वैसी ही हैं ,कही (कमेन्ट )बनके एक अच्छा चेहरा आपके ब्लॉग पे आये ये क्या आपको अच्छा नहीं लगेगा .गुस्ताखी माफ़ .आधी दुनिया है ही खूबसूरत .वो क्या लिख रही है क्या यह पढना आप ज़रूरी समझतें हैं या आत्म रति से ग्रस्त हैं मेरी तरह ?
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कुछ विशेष समझ नहीं आया, तीर तो दिख रहा है पर निशाना किधर है ? खुल कर कहिये या यह मान लूँ कि आप ने भी कूटनीति सीख ली है... ;)
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@ वीरू भाई मैं पूरे दिन क्या करता रहता हूं ?
यह जानने के लिए वकील साहब की पोस्ट देखिए
शहीद भगत सिंह दोजख में?
@ प्रिय प्रवीण जी ! समझदारों के लिए तो इशारा भी काफ़ी हुआ करता है और यहां तो पूरा तीर आप देख रहे हैं।
आने के लिए शुक्रिया।
ऊपर दिए गए लिंक पर आपका भी इंतज़ार हो रहा है जनाब ।
समझदार को इशारा काफी है......आदम युग से आज तक महिलायें वही कर रही हैं ...देह का प्रयोग ...उन्नति हो या अवनति महिलायें वही रहती हैं ...देह प्रदर्शन से अपना काम बना लेना....
हालत चिंताजनक है ... डॉ जमाल जी
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